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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ २३५ वादाम, चिरोंजी और पिस्ता-ये तीनों मेवे वहुत हितकारी है, इन को सब प्रकार के पाकों और लड्डु आदि में डाल कर भाग्यवान् लोग खाते है।। बादाम-मगज को तरावट देता और उसे पुष्ट करता है, इस का तेल सूघने से भी मगज़ में तरावट पहुंचती है और पीनसरोग मिट जाता है । ये गुण मीठे बादाम के है किन्तु कड़आ बादाम तो विष के समान असर करता है, यदि किसी प्रकार वालक तीन चार कडए वादामों को खालेवे तो उस के शरीर में विपके तुल्य पूरा असर होकर प्राणों की हानि हो जा सकती है, इस लिये चाख २ कर बादामों का खय उपयोग करना और बालकों को कराना चाहिये, वादाम पचने में भारी है तथा कोरा (केवल ) बादाम खाने से वह बहुत गर्मी करता है ॥ इक्षुवर्ग ॥ इक्षु (ईख)-रक्तपित्तनाशक, बलकारक, वृष्य, कफजनक, खादुपाकी, स्निग्ध, भारी, मूत्रकारक और शीतल है । ईख मुख्यतया बारह जाति की होती है-पौड़क, भीरुक, वंशक, शतपोरक, कान्तार, तापसेक्षु, काण्डेक्षु, सूचीपत्र, नेपाल, दीर्घपत्र, नीलपोर और कोशक, अब इन के गुणों को क्रम से कहते हैं: पौंड्रक तथा भीरुक-सफेद पौडा और भीरुक पौडा वातपित्तनाशक, रस और पाक में मधुर, शीतल, बृहण और बलकता है | कोशक-कोशक सज्ञक पौडा-भारी, शीतल, रक्तपित्तनाशक तथा क्षयनाशक है । कान्तार-कान्तार ( काले रंग का पौंडा ) भारी, वृष्य, कफकारी, बृहण और दस्तावर है ॥ दीर्घ पौर तथा वंशक-दीर्घ पौर सज्ञक ईख कठिन और वर्क ईख क्षारयुक्त होती है। १-फल और वनस्पति की यद्यपि अनेक जातिया हैं परन्तु यहा पर प्रसिद्ध और विशेष खान पान में आनेवाले आवश्यक पदार्थों के ही गुणदोष सक्षेप से बतलाये हैं, क्योंकि इतने पदार्थों के भी गुणदोष को जो पुरुप अच्छे प्रकार से जान लेगा उस की बुद्धि अन्य भी अनेक पदार्थों के गुण दोषों को जान सकेगी, सव फल और वनस्पतियों के विपय में यह एक वात भी अवश्य ध्यानमें रखनी चाहिये किअचात, कीडों से खाया हुआ, जिस के पकने का समय बीत गया हो, विना काल में उत्पन्न हुआ हो, जिस का रस नष्ट हो (सूख) गया हो, जिस में किंचित् भी दुर्गन्धि आती हो और अपक्क ( विना पका हुआ), इन सव फलों को कभी नहीं खाना चाहिये ॥ २-इस को गन्ना साठा तथा ऊख भी कहते हैं । ३-दीर्घ पौरसज्ञक अर्थात् घडी २ गाठोंवाला पौंडा ॥ ४-इस को वम्बई ईख कहते हैं ।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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