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________________ . (२२) ) पूर्व पुनम पारिप-मी पिभ्यास र कम रे जैसे-शीयता पूजन, देवो पूमन, मरिया मम, पार पर्म, इत्यादि धर्मो म विच इवाना चाहिये । पुध मा, निशा धादि शुभ +ों में जो पार्मिक सस्यामों का दान दिय भावे है साथ ही जो रण, पा रमोरी , मुस पस्त्रिका, मासन, मान, इत्यादि पार्मिक उपकरणों का मन भी परमा चादि मिम से पार्मिक काप मुल कि हो सफें । फिरपापिहाधिा समप सापाय पा- में गाना चाहिये । मुझे शोग पहना पटवा है -मरी यस मी दम ! नपकार मा पा पाठ भी नहीं मानती है। और साधु भार्या में २ दर्शन - पी नहीं फती सरिया में और हम कामोदर अपनी पारी पानी में घविप परी मायना र पैरती -पाप अपना परिप्रमीपन शास्त्रीप शिक्षामों में मकर रें। मिस मेस भोगे के लिये पादर्श पन नायें बोरि-भी भगवान ने म को पmt सीवान पावा म्प पतलापा १ मेसे कि-साप. सापी, मावा, मोर मापिका, सो म को ही बनना पाहिपे। ..
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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