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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ २१९ - पोषण के सब पदार्थों में दूध बहुत उत्तम पदार्थ है क्योंकि उस में पोषण के सब तत्त्व मौजूद हैं, केवल यही हेतु है कि बीमार सिद्ध और योगी लोग बरसों तक दूध के द्वारा ही अपना निर्वाह कर आरोग्यता के साथ अपना जीवन विताते है, बहुत से लोगों को दूध पीने से दस्त लग जाते हैं और बहुतों को कब्जी हो जाती है, इस का हेतु केवल यही है कि-उन को दूध पीने का अभ्यास नही होता है परन्तु ऐसा होने पर भी उन के लिये दूध हानिकारक कभी नही समझना चाहिये, क्योंकि केवल पांच सात दिनतक उक्त अडचल रह कर पीछे वह आप ही शान्त हो जाती है और उन का दूध पीने का अभ्यास पड़ जाता है जिस से आगे को उन की आरोग्यता कायम रह सकती है, यह बिलकुल परीक्षा की हुई बात है इस लिये जहातक हो सके दूध का सेवन सदा करते रहना चाहिये, देखो । पारसी और अग्रेज आदि श्रीमान् लोग दूध और उस में से निकाले हुए मक्खन मलाई और पनीर आदि पदार्थों का प्रतिदिन उपयोग करते है परन्तु आर्य जाति के श्रीमान् और भाग्यवान् लोग तो शाक राइता और लाल मिर्च आदि के मसालों आदि के शौक में पड़े हुए हैं, अब साधारण गरीब लोगों की तो बात ही क्या कहें ! इस का असली कारण सिर्फ यही है कि-आर्य जातिके लोग इस विद्या को बिलकुल नही समझते हैं इसी प्रकार से दूध की खुराक के विषय में मारवाड़ी प्रजा भी बिलकुल जब यह दशा है तो कहिये शरीर की स्थिति कैसे सुधर सकती है ? इस लिये के भाग्यवानों को उचित है कि - किस्से कहानी की पुस्तकों के पढ़ने तथा इधर उधर की निकम्मी गप्पों के द्वारा अपने समय को व्यर्थ में न गवा कर उत्तमोत्तम वैद्यक शास्त्र और पाकविद्या के ग्रन्थों को घण्टे दो घण्टे सदा पढ़ा करें तथा घर में रसोइया भी उसी को रक्खे जो इस विद्या का जाननेवाला हो तथा जिस प्रकार गाड़ी घोड़े आदि सब सामान रखते हैं उसी प्रकार गाय और भैस आदि उपयोगी पशुओं को रखना उचित है, बल्कि गाडी घोडे आदि के खर्च को कम करके इन उपयोगी पशुओं के रखने में अधिक खर्च करना चाहिये, क्योंकि गाड़ी घोड़ों से उतनी भाग्यवानी नही ठहर सकती है जितनी कि गायो और भैसो से ठहर सकती है, क्योंकि इन पशुओं की पालना कर इन के दूध घी और मक्खन आदि बुद्धिवर्धक उत्तमोत्तम पदार्थों के खाने से उन की और उन के लड़कों की बुद्धि स्थिर होकर बढ़ेगी तथा बुद्धि के बढ़ने से भाग्यवानी) अवश्य बनी रहेगी, इस के सिवाय यह भी बात है भैंसें पृथिवी पर अधिक होंगी उतना ही दूध और घी अधिक सस्ता होगा | श्रीमत्त्व ( श्रीमन्ताई वा कि - जितनी गायें और भूली हुई है, इस देश १ - देखो उपासक दशा सूत्र में दश वडे श्रीमान् श्रावकों का अधिकार है, उस में यह लिखा है किकामदेव जी के ८० हजार गायें थीं तथा आनन्द जी के ४० हजार गायें थीं, इस प्रकार से दशों के गोकुलभा ॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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