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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ २०३ यद्यपि खाने के पदार्थों में प्रायः छओं रसोंका प्रतिदिन उपयोग होता है तथापि कडुआ और कषैला रस खानेके पदार्थों में स्पष्टतया ( साफ तौर से) देखने में नहीं आता है, क्योंकि ये दोनों रस बहुत से पदार्थों में अव्यक्त ( छिपे हुए) रहते है, शेष चार रस (मीठा, खट्टा, खारा और तीखा) प्रतिदिन विशेष उपयोग में आते है ॥ यह चतुर्थ अध्यायका आहारवर्णन नामक चतुर्थ प्रकरण समाप्त हुआ | पाँचवां प्रकरण-वैद्यक भाग निघण्टु ॥ धान्यवर्ग ॥ चावल-मधुर, अमिदीपक, बलवर्धक, कान्तिकर, धातुवर्धक, त्रिदोषहर और पेशाव लानेवाला है ॥ __ उपयोग-यद्यपि चावलों की बहुत सी जातियां है तथापि सामान्य रीति से कमोद के चावल खाद में उत्तम होते हैं और उस में भी दाऊदखानी चावल बहुत ही तारीफ के लायक हैं, गुण में सव चावलों में सौठी चावल उत्तम होते है, परन्तु वे वहुत लाल तथा मोटे होने से काम में बहुत नहीं लाये जाते है, प्रायः देखा गया है कि-शौकीन लोग खाने में भी गुणको न देख कर शौक को ही पसन्द करते हैं, बस चावलों के विषय में भी यही हाल है। चावलों में पौष्टिक और चरवीवाला अर्थात् चिकना तत्व बहुत ही कम है, इस लिये चावल पचने में बहुत ही हलका है, इसी लिये बालकों और रोगियों के लिये चावलों की खुराक विशेष अनुकूल होती है। साबूदाना यद्यपि चावलों की जाति में नहीं है परन्तु गुण में चावलों से भी हलका है, इसलिये छोटे बालकों और रोगियों को साबूदाने की ही खुराक प्रायः दी जाती है।। यद्यपि डाक्टर लोग कई समयों में चावलों की खुराक का निषेध ( मनाई ) करते है परन्तु उसका कारण यही मालूम होता है कि हमारे यहा के लोग चावलों को ठीक रीति से पकाना नहीं जानते है, क्योंकि प्रायः देखा जाता है कि बहुतसे लोग चावलों को अधिक आच देकर जल्दी ही उतार लेते है, ऐसा करने से चावल ठीक तौर मे नहीं पक १-स्मरण रहना चाहिये कि-यद्यपि ये सव रस प्रतिदिन भोजन में उपयोग में आते हैं परन्तु इनके अत्यन्त सेवन से तो हानि ही होती है, जिस को पाठक गण ऊपर के लेखसे जान सकते हैं, देखो ! इन सव रसों में मीठा रस यद्यपि विशेष उपयोगी है तथापि अत्यन्त सेवन से वह भी बहुत हानि करता है, इसलिये इन के अत्यन्त सेवन से सदैव वचना चाहिये । २-इन को गुजरात में वरीना चोखा भी कहते है ।।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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