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________________ (७) मत सपमो कि जैनपम्म पिसी समुबाप पिरोपकाही पर्म पा सका है मनुष्यों 7 वा सेन मीषमाग इसको सात्यानुसार पारस र वदरूप निम पास कर सकता है (E) मैनपर्म के समस्त सप पौर परेश रस्त पसरूप मानिक नियम म्पापशास्त्र शरगनाम भोर विकारा सिदान्त के अनुसार रोनारण सत्य है___(8) सा दीवगम मौर हितोपदसा देव निप्रेम गुर और जीसा मापा शाम्ब ही नीया पार्य पपदेय दसावे । भोर रन स रखने का सौभाग्य पान मैनपर्म को ही मात्र है (१.) सपम्त दालो से पदार रमे पासी नन्दी As पति सी शक्तिनदा मी साप रस भन्याय पोर पमपा स्पाग र साम्प मार्ग पारा क्रमा पर पाण करत राना पाहिये।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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