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________________ ( १७8 ) उन्होंने पांच धान्यों ने क्या लाभ उठाया | उन से वृद्धि की या नहीं तब प्रातः काल होनेही शेठजी ने फिर एकबड़े विशाल भोजन मंडप तय्यार करवाया उसमें नाना मकार के भोजन तय्यार करवाए गए । 1 ताम्बूलादि पदार्थों का भी संग्रह किया गया फिर शेठजी ने अपनी जातिवाले पुरुषों को वा अपनी वधु प के सम्बन्धि पुरुषों को विधिपूर्वक श्रीमंत्रित किया जब भोजनशाला में सर्व जनवर्ग इक' होगया '' उनको भोजन दियागया सत्कार करने के' पर्थात् उनके सामने अपनी चारों वधुओं को बुलाया गया । फिर शेठ जी ने पहली वधु मे पांच धान्य मांगे तब बढी वधु ने अपने धान्यों के फाटों से पांच धान्लाकश शेठ जी के हाथ में रख दियो तव शेठ जी के उसे शपथ देकर कहा कि तुम्हें अमुक शर्म है कि क्या ये वी धान्य है। दधु ने कहा कि हे विता भी! यह धान्य वह तो नहीं है किन्तु मैंने अपने धान्य के कोठों में मे लोकान् दिये है । तब शेठ जी ने उस बंधु को विशेष सत्कार तो नहीं दिया और नहीं कुछ कहा परन्तु
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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