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________________ ( ११ ) __धर्म नही होना चाहिये-जिस में जीव दया हो। क्योंकि-जिस धर्म में जोव दया नही है वह र्म ही क्या है कारण कि-जीव रक्षा ही धर्म का मुख्य अङ्ग है इसी से अन्य गुणों की प्राप्ति हो सकती है। मित्रो ! जैन धर्म का यहत्व इपी वात का, है किइस धर्म में अहिंसा यम का अजीम प्रचार किया। अनन्त आत्माओं के प्राण बचाये हिंमा को दूर किया . यद्यपि-अन्यमताव तुम्बी लोगों ने भी "अहिंसा परमो धर्म इस महा वाक्य का अति प्रचार किया किंतु वह प्रचार स्वार्थ कोटी में रह गया क्योंकि-उन लोगों ने वति, यज्ञ, देवादि के वास्ते पहिमा को विहरीत पान लिया इसी कारण से वेह लाग इस महा वाक्य का पालन न कर सके। तथा अपने स्वार्थ के वास्ते, वा शरीरादि रक्षा वास्ते भी उन लोगों ने हिंसा विहीत मान लिया । नया-एकेन्द्रियादि कार्यों में कतिपय जनों ने जोव अशा ही नहीं खोकार की जैसे-मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु,
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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