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________________ पर्यती ! भगन् । पाता किस प्रकार मानी भाए कि-पान से मारमा सोए हुए मच्चे। पौर बहुत मे मामले पर परे। मगवान् । रेनम्ति ! मत्पपाती, पाप सरनेवाले, सर्प नीनों रेरितेपी समया, मर्प नीयों से अपने समान मानने वाले इत्यादि गण मासे मीच मागवे भच्चे होने है। पाप कर्मों करने ।ने, सई भीषों से पैर करने पाचे मगलादो अपर्म स मोर म्पवीत रमे पाये इस्पारि भरण पाने की मोए पहेही मोरे मोंकि उनके पोमे मे पचसी मात्मामों को शान्ति गती है। इस प्रकार अनेक प्रकार सभी से पा एचर पार जयदी समामारी वीषित होपर भीमची पन्दन पाखा भार्या के पास भएर मोप मास होर्मा। भी भगवान ने अपन पवित्र परणामसों में इस परास पवित्र किया और अनेक भास्पामों को ससार पा स पार रिण। इस प्रकार भीमनपान् परोपकार रखए पग्विन पास भीममान में प्रपाणपुरी (पारापुर) मगरी
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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