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(१४१) मिलगया, क्योंकि-जो लोग दया से पराडमुख हेरहे थे, उनको दपा धर्म में स्थापना करदिया।
सायरी मापके प्रति वचनों में न्याय धर्म ऐसे टपकता था जैसे कि-अमृत की वर्षा में कल्पवृक्ष प्रफुल्लित होजाता है।
एक समय की बात है दि-आप देश में दया धर्म का प्रचार करते हुए-कौशाम्बी नगरी के वाहिर एक पाग में विराजमान होगए-तव वहाँ पर "उदायन" नामी राजा भी व्याख्यान सुनने को आगया और गणी मादि अन्तःपुर भी वहां पहुंच गया, व्याख्यान होने के पश्चात् एक जगन्ती राजकुमारो ने श्राप से निम्नलिखित पन्न किये, और आपने न्यायपूर्वक उनका निम्नलिखितानुसार उत्तर प्रदान किए । जैसे किजयन्ती-हे भगवन् ! भव्य आत्मा स्वभाव में है वा विमाष से । भगवन्-हे जयन्ती ! स्वभाव से है विभाव से नहीं है। जयन्ती-हे भगवन् ! यदि भव्य प्रारमा स्वभाव से है तो क्या सर्वे भव्य पात्मा मोक्ष हो जायेंगे।