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ग्यारहवाँ पाठ। (श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी जी) - 'प्रिय पाठका ! जिस महान् आत्मा हा आज हम पाप को कुछ परिचय देना चाहते हैं वे परम पूज्य जगत् मसिद्ध श्री भगवान् महावीर स्वामी जी हैं जिन का कि दसरा नाम श्री वर्दमान भा है-यह भगवान् जैन धर्म के अंतिम चौवीसवें वोर्थ कर थे इन का समय बौद्ध सम कालीन का था जिस को आज २५२० वर्ष के लगभग होते हैं या महात्मा इस्खो-५६६ वर्ष पहिले इस भारत चप के क्षत्रिय कलपुर नामक नगर में जा उस समय परय रमणीय रूप गणा से पूर्ण या पानी के अतीव होने के कारण स दुमिन का तो वहां पर अ'भार ही था किन्तु राजा के पुण्य के प्रभाव से सवे प्रकार के उपद्रव वहां शान्त हो रहे थे, मरी मादि रागों से भी लोग शान्त ये फिन्तु नई से नई कलाओं का भाविष्कार करने ये -जिस के कारण से वा "क्षत्रिय कुण्ड पुरा ग्राम ग्राम की अवस्था को छोड़ कर राजधानो की दशा को प्राप्त .
हो गया था।