SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नभ पा सम्यग् दर्शन किसे कहते । सामान "बॉ है। निष t (( 4 )) सम्यग् चारित्र किसे कहते सम्यग् शब्द किस दिये गया है। संशय ज्ञान किसे कहते है। विपर्ययज्ञान किसे व ti अनम्यवसाय ग्राम किसे कहते है। सुवावा पारिश संग्रम, विपर्यय, साप, इम दापों के दूर करने Form 1 बिस ज्ञान में संशप प हो जाये, जैसे गमाव स्वाथ्यु देषा पुरुष है" विपराध काम जैसे- सीप में पदों की बुद्धि तथा मृग शुष्णा का स जैसे मार्ग द पकते हुए, पाद में (पैर) में फटक लग गया था फिर पह विचार करमा कि-पाद में पण बगा ? इस प्रकार संशय को धनपर साब कहत है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy