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________________ महामानव तुलसी प्रो० मूलचन्द सेठिया, एम० ए० बिरला प्रार्ट स कालेज, पिलानी प्राचार्यश्री तुलसी का नाम भारत में नैतिक पुनरुत्थान के प्रान्दोलन का एक प्रतीक बन गया है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रो में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध भाचायधी तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत-अान्दोलन अन्धकार में दीप-शिखा की तरह सबका ध्यान प्राकृट कर रहा है। एक मुग्ध विस्मय के साथ युग देख रहा है कि एक सम्प्रदाय के पाचार्य में इतनी व्यापक संवेदनशीलता, दूरदर्शिता मोर अपने सम्प्रदाय की परिधि से कार उठ कर जन-जीवन की नैतिक-समस्थापो से उलझने भौर उन्हें समझाने की प्रवृत्ति कैसे उत्पन्न हो ? भाचार्यश्री तुलसी को निकट से देखने वाले यह जानते हैं कि इसका रहस्य उनकी महामानवता मे छिपा है । मानवीय सवेदना से प्रेरित होकर ही उन्होंने प्रतिकता के विरुद्ध प्रणवत-मान्दोलन पारम्भ किया। पाज के युग मे, जव कि प्रत्येक घग एक-दूसरे से भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहा है और स्वयं अपने को निकोप घोषित करता है, पाचार्यश्री तुलसी अपने निलप व्यक्तित्व के कारण ही यह अनुभव कर सके कि भ्रष्टाचार एक बर्ग-विशेप की समस्या न होकर निखिल मानव-समाज की समस्या है। जितनी ध्यापक समस्या हो, उसका समाधान भी उतना ही मुलग्राही होना चाहिए। भाचार्यश्री तुलसी ने इस मानवीय समस्या का मानवीय समाधन हो प्रस्तुत किया है। उनका सन्देश है कि जन-जीवन के व्यापक क्षेत्र में, जो व्यक्ति जहां पर खड़ा है, वह पपने विन्द के केन्द्र से दत्त बनाते हुए समाज के अधिकाधिक भाग को परिपर करने का प्रयल करे । यही कारण है कि जब भन्याय विचारक विवाद पौर वितर्क के द्वारा प्यार के छिलके उतारते ही रह गये, भाचार्यश्री तुलसी अपनी निष्ठा और भार मानवीय संवेदना के सम्बय को लेकर भ्रष्टाचार
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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