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________________ मुघारक तुलसी माधिक दया मुपरे । इस योजना के लिए पावश्यक था कि सुचरित्र परहित. रत, कतव्य-परायण, सदाचारी नेता, हारिम, मापारी, शिक्षक, कारोगर प्रादि देश के विकास की बागरीर परने हाथ में हैं। यदिइन वगों में सदाचारी कमोदई तो देखकरहित न होकरहित हो जाएगा और देश उन्नति की भोर भासर नहीं हो सकता। दुर्भाग्यवस जिस समय यह मुपवसर पाया और पाया हुई कि सब इतने क्यो के कठोर परिश्रम मोर त्याग के फलस्वरूप देश की उन्नति होगी भोर गरीबी मिटेगो, उस समय देखा गया कि कर्मचारियों, नेतापों, व्यापारियों भादि में मनापार और स्वापं को द्धि हो रही है क्योकि पर इनके लिए निस्य नये अवसर प्राने लगे। अगर यही क्रम बना रहा तो नई योजना का कोई सामने होगा और उनकी सफलता सदिग्ध बन जाएगी। देश में चारों भोर यही मावाज उठने लगी कि शासन को इस प्रकार के मगर-- मच्छो से माया पाए पोर भ्रष्टापार (Corruption) को दूर किया जाए। ऐसे समय में मापायं तुलसी ने अपने मात-पान्दोलनको प्रबल किया भोर अनेक वर्षों के सदस्यों को पुन. सदाचार को पोर प्रेरित किया। प्राचार्य तुलसी ने यह काम पहले ही शुरू कर दिया था, पर इसकी प्रधानता और गतिशीलता स्वतत्रता के बाद, विशेष रूप से बढ़ी। इनका यह मान्दोलन अपने हंग का निराला है। घमं के सहारे व्यक्ति को ये प्रती बनाते हैं मोर उसको इस प्रकार बल देकर कुमार्ग मोर कुरीतियों से अलग करके सदाचार बी भोर अग्रसर करते हैं। यह बात छोटे-छोटे होते हैं, पर इनका प्रभाव बहुत ही गम्भीर होता है, जो व्यक्ति तथा समाज के जीवन में क्रान्ति ला देता है। व्यापारियों, सरकारी कर्मचारियो, विद्यार्थियों शादि में यह पान्दोलन चल चुका है और इसके प्रभाव में सहसों व्यक्ति मा चुके हैं। पाज इसकी महत्ता स्पष्ट न जान पड़े, पर कल के समान में इसका असर पूरी तरह दिखाई पड़ेगा, जन समाज पुनः सदाचार मौर धर्म द्वारा अनुप्लावित होगा और भविष्य में प्राज की बुराइयो का अस्तित्व न होगा । प्राचार्य तुलसी और उनके शिष्य मुनिगण का कार्य भविष्य के लिए है और नये समाज के सगठन के लिए सहायक है। इसकी सफलता देश के कल्याण के लिए है। पाशा है, यह सफल होगा और प्राचार्य तुलसी सुधारकों को उस परम्परा में जो इस देश के इतिहास में बरावर उन्नति लाते रहे हैं, अपना मुख्य स्थान बना जाएंगे । उनके उपदेश और नेतृत्व से समाज गौरवशील बनेगा।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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