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________________ भारतीय संस्कृति के संरक्षक . -- - महान् है । एक श्रेष्ठ सस्प-धर्मी सन्यासा क द्वारा उसका संचालन हा रहा है, अपने सम्प्रदाय को संगठित करने के बाद उन्होदामाच१६४ को देशव्यापी नैतिक पतन के विरुद्ध अपना मान्दोलन प्रारम्भ किया। युगपुरुष व वीर नेता हम सदियो की दासता के बाद सन् १६४७ में स्वतन्त्र हुए, किन्तु हमने अपनी स्वतन्त्रता अनुशासन के कठिन मार्ग से प्राप्ति नहीं की। इसलिए अधिकार और घन-लिप्सा ने समाज-संगठन को विकृत कर दिया। जीवन के हर क्षेत्र में प्रकुशलता का बोलबाला है। नीतिहीनता ने हमारी शक्ति को क्षीण कर दिया है और इसलिए जब तक हम नैतिक स्वास्थ्य पुन. प्राप्त नही कर लेते, हम राष्ट्रो के समाज मे अरना उचित स्थान प्राप्त करने की मासा नहीं कर सकते। मानव पतन के सर्वव्यापी प्रकार के मध्य नैनिक उत्थान की मुखर पुकार पाश्चर्यकारक ताजगी लिये हुए माई है मौर नगे पाँव व श्वेत वस्त्रधारी यह साधु अचानक ही युगपुरुप व वीर नेता बन गया है। ऐसे ही पुरुष को प्राज राष्ट्र को तात्कालिक मावश्यकता है। शुक्ल यजुर्वेद में एक स्फूर्तिदायक मन्त्र है, जिसमे ऋपि अपनी सच्ची भास्था प्रकट करते हैं-"ऐ उज्वल ज्ञान के मालोक, पाक्ति की अग्नि-शिखा, मुझे सत्पथ पर प्रग्नसर कर 1 मैं नये पवित्र जीवन को प्रगीकार परूंगा, ममर पात्मानों के पद-चिह्नों पर चलता हुना सत्य और साहस का जीवन व्यतीत करूंगा" मनुष्य को मात्माभिव्यक्ति कर्म के माध्यम से होती है, ऐसा कर्म जो कष्टसाध्य और स्थायी हो और जो प्रात्मा को मुक्ति मोर विजय को घोषणा करने वाला हो । मनुष्य की निस्वार्थ भाव से फल की प्राक्षा का स्याग करके कर्म करना चाहिए । यही सच्ची चारित्रिक पूर्णता है। चरित्र मोर नैतिक श्रेष्ठता के बिना मनुष्य पशु बन जाता है और सत्यं, शिवं व सुन्दरं का अनुसरण पर वह प्रेम के मार्ग पर ऊँचा और अधिक ऊंचा उठता जाता है और मन्त में अमर प्रात्मानों में राज-मिहामन के पद पर मान होता है । मैतिक मूल्यों को स्थापना माधानी नुपनी ने भारत माता की सच्ची मुक्ति के लिए मणुवत.
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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