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________________ पापायी तुरन पर उमा भी antixnा हो और टहरान, हरमिति में भारत की IET, उसी प्रनिया नि है पागाधी तुलमी रक गाद गाधनायक, ना तेराव भागापौरमा मोनो । नरेन में औसवगे बड़ी बात है यह है उन नपा पाने प्रवासी गा.पा एक विशेष जाप्रम गायन.TAIT निमिग ममगाउन इम बन-स्यामा जो स्वरूप है, उगीको गोपना, बरगान-पान्दोगन में समाहित है। दूगरों मे, नोम प्रापा को निर्माण का पाग्दोलन रहा का समता है। भारतीय माति प्रोर दान के महिमा, सन्य प्रारि सावनोम माधारो पर नैतिकता पीए मायापार-गहिला की मामी ने है सकते हैं। व्यक्ति न होकर स्वयं एक संस्था प्राचार्यश्री तुलमी प्रथम पमांना जोमाने का साघु-संघ के साथ सार्वजनिक हित की भावना पर ध्यान में उतरे हैं। पावापेयी साहित्य, दर्शन और शिक्षा के अधिकारी प्राचार्य एक घंष्ठ साहित्यकारभार धानिक है। अपने साथ रांघ में उन्होने निरपेक्षा शिक्षा प्रणाली का जन्म " है तथा संस्कृत, राजस्थानी भाषा को भी बति में उनसरा भिनन्दनीय योग है। उनके संघ में हिन्दी की प्रधानता प्राचार्यश्री की मम-बममी परिचायक है। मापकी प्रेरणा से ही साघ-समदाय सामयिक गतिविधि रो दर्शन मार साहिल के क्षेत्र में उतरा है। इसी के प्रनन्तर माप देश की गिरती हुई नाता को ऊचं सचरण देने मे प्रेरित हए और उगो का शम परिणाम यह सब प्रणयत-आन्दोलन बना। प्राचार्यश्री तुलसी एक व्यक्ति न हार " संस्था -रूप हैं। अन्त मे मैं प्राचार्यश्री तुलसी को, उनके इस वास्तविक " तथा उनके द्वारा हो रहे जन-कल्याण के कार्य को अपनी हादिक धना की गिरती हुई नैतिक स्थिति व्यक्ति न होकर स्वयं एक
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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