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________________ . भाचार्यश्री तुर मसः । एक नोन पर्याप्त है, सभी दूसरे दोष मानुषंगिक बनकर उसके 1 चले पाते हैं। जहाँ भौतिक विभूति को मनुष्य के जीवन में सर्वोच्च स्थान मित्रः है, वहाँ लोभ से बचना असम्भव है। असत्य के कन्धे पर स्वतन्त्रता का बोझ - हम भारत में वेल्फेयर स्टेट-कल्याणकारी राज्य की स्थापना रहे है और कल्याण' गन्द की भौतिक व्याख्या कर रहे हैं। परिणाम हमारे सामने है । स्वतन्त्र होने के बाद चरित्र का उन्नयन होना चाहिए था, त्याग कोपाल बढ़नी चाहिए थी, पगर्य-सेवन की भावना में प्रभिवद्धि होनी चाहिए पोसा लोगों में उस्माहर्वक लोकहित के लिए काम करने की प्रवृत्ति दोस पाना पाहिए यो। एडी-चोटी का पमीना एक करके राष्ट्र को हित-देश पर मा . ग्योछावर करना था। परन्तु ऐसा हुमा नहीं। स्वार्थ का बोलबाला है । परित्र का घोर पतन हमा है। स्तंम्पनिशद नहीं मिलती। व्यापारो तर बारी मंचारी, मारक, हारटर पिसी मे लोकसपही भावना नहीं । मम पिया बनाने की धुन मे है, भने ही राष्ट्र का माहित हो जाए। कार जी परागप्रपिर-म-पपिकमा लेकरम-से-गम पाम करना, यह साभार सीवानहोगाम करोगे पपा ग्यय कर रहे हैं. परन उगो मारा भी माम नहीं उठा रहे है । लोभ धानी हो रहा है और उसके साप पर का मामा नापा है। समय-माल, पगम्य पावरण पोर me दिमाएर १९१७ मे महारमाजी न रहा पाकिहमारे पास महामारी हो' प्रोमा 'नही' का अर्थ 'मई बह र पार भीमम सा हो। पन माप के Hोही मानधन देशको मे मा जा मानामगा । मोमित महामात्रीने देना * में चस्यानपादाचारा ffm-पषि aft TRIT बानीहार में भी म Premoriat भाभा में मको। मा HTTERamबसर मोनने रोग आ कर tr niकोएना , पो " - Pl
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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