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________________ परम साधक तुलसीजी अणुव्रत-प्रान्दोलन उमी का परिणाम है 1 अणुव्रत-प्रान्दोलन मानव-समाज जिन जीवन-मूल्यों को भुला रहा था, उसे स्थापित करता है। मानव का प्रारम्भ से मुख प्राप्ति का प्रयत्न रहा है। ऋषि-मुनि सत साधक और मार्ग-द्रष्टा तीर्थकर यह बताते पाये हैं कि मनप्य सदगुणों को अपनाने से ही सुखी हो सकता है। सुख के मोतिक या बाह्य साधनो से वह सुखी होने का प्रयत्न करता तो है, लेकिन वे उमे सुसी नही बना सकते / सुखी बना जा सकता है, सदगुणों को अपनाने से। अणुव्रत उसे सच्ची दृष्टि देता है। केवल किसी बात की जानकारी होने मात्र से काम नहीं चलता, पर जो ठीक बात हो, उसे जीवन में उतारने का प्रयत्न हो. विचारों को प्राचार की जोड मिले, तभी उसका उचित फल प्राप्त होता है। प्रणुव्रत केवल जीवन की सही दिशा नहीं बताता, पर सही दिशा में प्रयाण करने का संकल्प करवाता है और प्रयत्नपूर्वक प्रयाण करवाता शुभ की पोर प्रयाण भारत में सदा से जीवन-ध्येय बहुत उच्च रहा है, पर ध्येय उच्च रहने पर यदि उसका प्राचार सम्भव न रहे तो वह ध्येय जीवनोपयोगी न रह कर केवल बन्दनीय रह जाता है। पर अणवत केवन उच्च ध्येय, जिमका पालन न हो सके. ऐसा करने को नहीं कहता। पर वह कहता है, उसको जितनी पात्रता हो, मो जितना ग्रहण कर सके, उतना करे / प्रारम्भ भले ही अणु से हो, पर जो निश्चिय किया जाये, उसके पालन में दृढना होनी चाहिए। इस दृष्टि से अणुव्रत दशम की घोर प्रयागु कर दृढतापूर्वक उठाया हया पहला कदम है। ___ मनोवैज्ञानिक जानते हैं कि साल्प पूरा करने पर प्रात्म-विश्वास बढ़ता है पौर विकास की गति में तेजी आती है। इसलिए प्रयुक्त भले ही छोटा दिखाई पड़े, लेकिन जीवन-साधना के मार्ग मे महत्वपूर्ण कदम है। इस दृष्टि से प्राचार्य थी तुमीजी नै भरणात को नये रूप मे समाज के सन्मुख रस कर उसके प्रचार में अपनी तथा प्रपरे शिथ्य-ममुदाय और अनुयायियों की शक्ति लगाई। आज के जीवन के राही मूल्य भुलाये जाने वाले जमाने में प्रत्यन्त महत्वपूर्ण बात है / पदि इस मान्दोलन पर वे सारी शक्ति केन्द्रित कर इसे सफल कर सके तो केवल धर्म या सम्प्रदाय वा ही नहीं, मपितु मानव-जाति का बहुत बड़ा
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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