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________________ द्वितीय सत्र तुलसी इसलिए रूस को उस दिशा में और अधिक बढ़ने का मौका कद्र कदापि नहीं दे सकता । साथ ही विश्व के अन्य देशो पर भी इसकी प्रतिक्रिया हुई है और स्पड मे प्रायोजित तटस्थ देशों का सम्मेलन इस घटना से कदाचित अत्यधिक प्रभावित हुमा है; क्योंकि सम्मेलन शुरू होने के दिन ही रूस ने अपनी यह पान ककारी घोषणा की है । इस प्रकार पाज का रिश्त्र साविक शक्ति के विनाशकारी परिणाम से बुरी तरह त्रस्त है। सभी पोर त्राहि-त्राहि-सी मची हुई है। क्योंकि युद्ध शुरू हो चुसने पर कदाचिन् कोई 'साहि-त्राहि' पुकारने के लिए भी शेप न रह जायेगा। इस विषम स्थिति का रहस्य है कि शान्ति के पावरण में युद्ध की विभीपिका सर्वत्र दिखाई पड़ रही है ? परिग्रह और शोषण को जनयित्री जब मानद भौतिक तथा शारीरिक सुखो की प्राप्ति के लिए पापविता पर सर पाता है और अपनी प्रात्मा की प्रान्तरिक पुकार का उसके समक्ष कोई महत्त्व नहीं रहता, तब उसकी महत्त्वाक्षा परिषद और शोपण को जन्म देती है. जिसका स्वाभाविक परिणाम साम्राज्य प्रयया प्रभुत्व विस्तार के रूप में प्रार होता है । अपने लिए जब हम प्रावश्यकता से अधिक पाने का प्रयास करते हैं, तब निश्चय ही हम दूसरो के स्वत्व के अपहरण की कामना कर उठते है, बसि पोरों की वस्तु का अपहरण किये बिना परिग्रह की भावना तप्त नही की जा सरती। यही भावना मौरों की स्वतन्त्रता का भाहरण कर स्वच्छन्दता बी प्रवृत्ति को जन्म देती है जिसमा व्यवहारिक रूप हम 'उपनिवेशवाद' मे देखते है। दोपण की चरम स्थिति कान्ति को जन्म देती है, जैसा कि शास और Fस मे हुमा पोर मन्सन हिंसा को ही हम मुक्ति का साधन मानने लगते हैं तथा साम्यवाद के सबल साधन के रूप में उसका प्रयोग कर शान्ति पाने की लालसा परते हैं, किन्तु पान्ति फिर भी मृग-मरीचिका बनी रहती है। यदि ऐसा न होना तो रूस पान्ति के लिए माणविक परीक्षणों का सहारा यो लेवा मौर रिसो भी समझौता-चार्वा को पृष्ठभूमि मे सरित-सन्तुलन का प्रश्न सों सर्वाधिक महस पादा रहता। দিলাম भारत के प्रारीन एवं प्राचीन महात्मापों ने सत्य और महिमा पर जो
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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