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________________ भाचार्यश्री दुर समय, महापुरप का जन्म हो, वह जिस किसी नाम से पुकारा जाता हो, वो तपस्वी पुरुष सदैव प्रादर का पात्र होता है। इसलिए हम सभी मार तुलसी का प्रभिनन्दन करते हैं। उनके प्रवचनो से उस तस्व को महामार की मभि लापा रखते हैं जो धर्म का मार और सर्वस्व है तथा जो मनुष मा के लिए कल्याणकारी है। भारतीय मरवृति ने पर्म को सदैव ऊँमा स्थान दिरा है । उसको परिभाषाएं ही उसकी व्यापरता को द्योतक हैं। करसाद ने कहा हैदानायससिदि स धर्म -- जिसमें इम लोक और परलोक में उनति हो कार परम पुस्पा की प्राप्ति हो वह धर्म है। मनु ने कहा-धारणार - समाज को जो धारण करना है, वह धर्म है। पाम बहते है-धमा रामाच, स धर्म: किन्न सेव्यते-पमं से पर्थ और काम दोनों बनते है, सिर पर कारोवन क्यों नहीं किया जाना' ग पार को मनाकर भारत मापने को, पता भारतीताको सोगा, न वह अपना हिसार सोमा और समार" हो गग कर गोगा। भौतिश्ता पीपह-दौड़ म RAT 1 में भौतिक वस्तुपो के fu जो पावर मी हा हा भारत भी उसमे गमलोपया है। भोनिदरसे शान होगा | मी, पनी मा के गायनिहोना 1 महीं है। परन्तु भा. इसमें पानी को नाकामTी निवा-ना" rammar 1. पन तिर पर करणीयमान है | raman नंगी नाकामागं गिनाला । बार HITrm a को रीना : १ 1 4 का , और ना RK "TT4101 ma.THो भी गती गोभी i a m attaminानी TIME 14. 17 t *तर सो
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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