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________________ १२२ भाचार्यश्री तुलसी बान समय एक रामी दयानक सिदान्तों के प्राधार पर जैन धर्म के सेवकों पमग मागं रखा, वे भी बड़े चार साय प्राचार्यजी के प्रणुदत मान्दोलन के विशेष काकर्ता बने हुए है। उनका यह मब प्रभाव देस कर पाश्चर्य होता है कि राजस्थान के एक मामा परिवार में जन्म लेने वाला यह मनुष्य कितने विलक्षण प्रतिव का स्वामी है, जिसने वामन की तरह से अपने घरणों से भारत के कई राज्यों की भूमि नापी है। इस ममय देश में एक-दो व्यक्तियों को छोड़ कर माचार्य तुसमी पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने प्राचार्य विनोग से भी अधिक पदयात्रा कर देश की स्थिति को जाना है और उमसी नम्ज देख कर यह पेप्टा को है कि किस प्रकार के प्रयल करने पर मान्ति प्राप्ति की जा सकती है। उनके जीवन-दर्शन में कभी विराम और विथाम देखने का अवसर नहीं मिला। जब कभी भी उन्हें किसी प्रवसर पर प्रपना उपदेश करते देखा, तब उन्हें ऐमा देख पाया कि वे उस समारोह में बैठे हुए हजारों शक्तियों को भावना को पढ़ रहे हैं। उन सबका एक व्यक्ति किस प्रकार समाधान कर सकता है. यह उनकी विलक्षणता है। समारोहों में सभी लोग पूरी तरह से सुलझे हुए नहीं होते । उनमें सकी विचारधारा के व्यक्ति भी होते हैं। उनमें कुछ ऐसे भी व्यक्ति होने है जो अपने सम्प्रदाय विशेप को अन्य सभी मान्यनामों से विशेष मानते हैं। उन सब व्यक्तियों का इस प्रकार समाधान करना l साधारण व्यक्ति वा काम नहीं है । ग्रामों और कस्बों की प्रज्ञान परिधि में रहने वाले लोगों को, जिन्हे पगडही पर चलने का हो मम्यास है। एक राजमार्ग से उन्हें किसी विशेष लक्ष्य पर पहुँचा देना माचार्य तुलसी जसे हा सामथ्र्यवान् व्यक्तियों के वश की बात है। विरोधियों से नम्र व्यवहार उनके जीवन की विलक्षणता इस बात से प्रगट होती है कि वे अपने विरोधियों की कानों का समाधान भी बडे मादर और प्रेमपूर्ण व्यवहार से करते हैं। कई बार उन मोर प्रचण्ड अालोचकों को मैंने देखा है कि भाचाजी से मिलने के बाद उनका विरोध पानी की तरह से लदक गया है। यंत्री के दिल्ली पाने पर मैं यही समझता था कि वे जो कुछ काय है. वह मोर साधु-महात्मामों की तरह से विशेप प्रभाव का कार्य नहीं
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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