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________________ मानवता के उन्नायक ११९ अपने इस गुण के कारण मावायंधी ने बहुत से ऐसे व्यक्तियों को अपनी मोर मावृष्ट कर लिया है, जो उनके सम्प्रदाय के नहीं है। अपनी पहली भेंट से लेकर अब तक के अपने ससर्ग का स्मरण करता है तो बहुत से चित्र पांखों के सामने घूम जाते हैं । उनले भनेक बार लम्बी चर्चाएं हुई हैं, उनके प्रवचन सुने हैं, लेकिन उनका वास्तविक रूप तब दिखाई देता है, जब वे दूसरों के दुःख की बात सुनते हैं । उनका सवेदनशील हृदय तब मानो स्वयं व्ययित हो उरता है और यह उनके चेहरे पर उभरते भावो से स्पष्ट देखा जा सकता है। पिछली बार जब वे कलकत्ता गये थे तो वहाँ के वतिपय लोगों ने उनके तथा उनके साधु-सावी वर्ग के विस्ट एक प्रचार का भयानक तूफान खड़ा किया था। उन्हीं दिनो जव मैं कलकत्ता गया और मैंने विरोध की बात मुनी तो प्राचार्यश्री से मिला । उनसे चर्चा की। मावार्यश्री ने बड़े विहल होकर कहा-"हम साधु लोग बराबर इस बात के लिए प्रयत्नशील रहते हैं कि हमारे कारण पिसी को कोई मनिषा न हो।""स्थान पर हमारी साध्वियो टहरी थों, लोगों ने हम से माकर कहा कि उनके कारण उन्हें थोड़ी कठिनाई होती है। हम ने तत्काल साध्वियों को वहां से हटाकर दूसरी जगह भेज दिया। यह हमें यह मालूम हो जाए कि हमारे कारण यहां के लोगों को परेशानी या प्रमुविषा होती है तो हम इस नगर को छोड़कर चले जाएंगे।" पाचार्यधी ने जो कहा. यह उनके अन्तर से उठकर मामा या। भारत-भूमि सदा से पाप्यात्मिक भूमि रही है मौर भारतीय संस्कृति की गुंज किसी जमाने में सारे संसार में सुनाई देनी थी। प्राचार्यधो को माखों के सामने पपनी सस्कृति तथा सम्यता के पाम शिखर पर खड़े भारत का चित्र रहता है। अपने देश से, उसकी भूमि से मोर उस भूमि पर बसने वाले जन से, उन्हें बड़ी पाया है और सभी गहरे विश्वास के साथ कहा करते है-"वह दिन माने वाला है, जबकि पशु-बल से उजताई दुनिया भारतीय जीवन से महिसा और पान्ति की मौख मौरेगी।" माधापंथी पीवी हो पोर उनके हार्यों मारा अधिकाधिक सेवा होती रहे. ऐमो हमारी सायना है।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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