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________________ १०८ प्राचार्यश्री तुलसी पति भवन मन्त्रियों की कोठियों, प्रशासकीय कार्यालयों और व्यापारिक तथा प्रौद्योगिक संस्थानों एवं शहर के गली-कूचो व मुहल्लों में मणुव्रत मान्दोलन की गूंज ने एक सरीखा प्रभाव पैदा किया | उसको साम्प्रदायिक बता कर प्रथवा किसी भी अन्य कारण से उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकी और उसके प्रभाव को दबाया नही जा सका । पिछले बारह वर्षों में पूज्य आचार्यश्री ने दक्षिण के सिवाय प्रायः सारे ही भारत का पाद-विहार किया है मोर उसका एकमात्र लक्ष्य नगर-नगर, गाँव-गाँव तथा जन-जन तक अणुव्रत प्रान्दोलन के सन्देश को पहुँचाना रहा है। राजस्थान से उठी हुई नैतिक निर्माण की पुकार पहले राजधानी में गूंजी और उसके बाद सारे देश में फैल गई। राजस्थान, पंजाब, मध्यभारत, खानदेश, बम्बई और पूना; इसी प्रकार दूसरी दिशा में उत्तरप्रदेश बिहार तथा बगाल मौर कलकत्ता को महानगरी में पधारने पर पूज्य प्राचार्यश्री का स्वागत तथा प्रभिनन्दन जिस हार्दिक समारोह व धूमधाम से हुम्रा, यह सब प्रणुव्रत प्रान्दोलन को लोकप्रियता, उपयोगिता धीर माकर्षण शक्ति का ही सूचक है । मैंने बहुत समीप से पूज्य माest के व्यक्त्वि की महानता को जानने व समझने का प्रयत्न किया है। प्रणुत्र माग्दोलन के साथ भी मेरा बहुत निकट-सम्पर्क रहा है । मुझे यह वर्ष प्राप्त है कि पूज्यश्री मुझे 'प्रथम प्रती कहते हैं । माचार्यश्री के प्रति मेरी भक्ति और प्रजुवत मान्दोलन के प्रति मेरी aafe कभी भी क्षीण नहीं पड़ी । भावामंत्री के प्रति था और प्र प्रान्दोलन के प्रति विशम और निष्ठा में उत्तरोत्तर वृद्धि ही हुई है। महात्मा गांधी ने देश में नैतिक नव-निर्माण का जो सिलसिला शुरू किया था, उसको प्राचार्यश्री के शुक्त-मान्दोलन ने निरन्तर मागे ही बढ़ाने का सकल प्रयत्न किया है। मह भी कुछ नहीं है कि नैतिक नवनिर्माण की दृष्टि से पूज्य प्राचार्यश्री ने उसे और भी अधिक तेजस्वी बनाया है। चरित्र-निर्माण हमारे राष्ट्र को सबसे बड़ी महत्वपूर्ण समस्या है। उसको हल करने में पत्रन्दोलन जैसी ही भवन में सफल हो सकती है. एकमंत्र से स्वीकार किया गया है। राष्ट्रीय नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ता, विभिन्न राजनैतिक दवाओं और मत का प्रतिनिधित्व करने बाजे समाचार ने एक समीर उपयोगिता को स्वीकार
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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