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________________ चरैवेति चरैवेति को साकार प्रतिमा जो अपने में सागरं सागरोपम. की तरह अनुपम है। जो प्राध्यात्मिक सन्तोष और प्रात्मविश्वास की भावना इन यात्रानों के परिणामस्वरूप जनता को प्राप्त हुई, उसने समाज को चरित्र के चारु, किन्तु कठिन पथ पर चलने के लिए नवीन प्रेरणा प्रदान की है। अब तक लगभग एक करोड़ व्यक्ति अणुव्रत ग्रान्दोलन के सम्पर्क में पा चुके हैं और एक लाख से अधिक व्यक्तियो ने उससे प्रभावित होकर बुरी भादतों का परित्याग कर दिया है । प्राचार्यश्री तुलसी सूर्य की तरह हो न केवल दिव्याग हैं, अपितु सूर्य की तरह ही उनकी समस्त दिनचर्या है । वे भारत के माध्यात्मिक स्रोत हैं। उन्होने अपने चैतन्य काल से अब तक जो कार्य किया है, उस सब पर उनके श्रान्तिहीन श्रम की छाप विद्यमान है। वह जनता जनार्दन का एक ऐसा इतिहास है जिसकी तुलना धर्म-सस्थानो के इतिहास से की जा सकती है । इस सकाम संसार में वह निष्काम दीप की तरह जल रहा है । जीवन का एक पल भी ऐसा नहीं है, जिसमे उन्होंने अपनी ज्योति का दान दूसरों को न दिया हो। वह 'चरैवेति' की तरह एक ऐमी साक्षात् प्रतिमा है जिसके सम्मुख सिर सहज ही थदा से नत हो जाता है ।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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