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________________ प्रणुव्रत आचार्यश्री तुलसी और विश्व शान्ति श्री अनन्त मिश्र सम्पादक, परमार्ग, कलकत्ता नागासाकी के खण्डहरों से प्रश्न विश्व के क्षितिज पर इस समय युद्ध और विनाश के बादल मण्डरा रहे हैं। अन्तरिक्षयान और प्राविक विस्फोटों की गड़गडाहट से सम्पूर्ण संसार हिन उठा है । हिमा, द्वेप पर घुमा की भट्टी सर्वत्र मुलग रही है। संसार के विपारधील पोर शान्तिप्रिय व्यक्ति भाविक युद्धों की कल्पना मात्र से प्रतरित है। ब्रिटेन के विख्यात दार्शनिक बटुण्ड रसेल प्राणविक परीक्षणविस्फोटों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए ६ वर्ष की आयु मे सत्याग्रह कर रहे है । प्रशान्त महासागर, सहारा का रेगिस्तान, साइबेरिया का मैदान धौर अमेरिका का दक्षिणी तट ; भयंकर मणुत्रमों के विस्फोटों से अभिजित हो रहे हैं । सोवियत रूस ने ५० से १०० मेगाटन के अणुवमो के विस्फोट की घोषणा की है तो प्रमेरिका ५०० मेगाटन के बमों के विस्फोट के लिए प्रस्तुत है | सोवियत रूस और अमेरिका द्वारा निर्मित यान सेक्डो मील ऊंचे प्रन्तरिक्ष के पर्दे को फाडते हुए चन्द्रलोक तक पहुँचने की तैयारी कर रहे हैं। छोटे-छोटे देशों की स्वतन्त्रता बढे राष्ट्रों की कृश पर प्रार्थित है। ऐसे सकट के समय स्वभावत: यह प्रश्न उठता है कि संसार मे वह कौन सी ऐसी शक्ति है जो प्रणुत्रमो के प्रहार से विश्व को बचा सकती है। जिन लोगों ने द्वितीय युद्ध के उत्तरार्द्ध में जापान के नागासाकी और हिरोशिमा जैसे शहरों पर प्रणवमों वा प्रहार होते देखा है, वे उन नगरों के खण्डरों से यह पूछ सकते हैं कि मनुष्य कितना क्रूर और पैशाचिक होता है । निस्सन्देह मानव की क्रूरता और पशाचिरता के दामन की क्षमता एकमात्र हसा मे है । सत्य मौर महिसा मे जो दावित निहित है, वह प्रणु और उन
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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