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________________ ३८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् पिशाचसे पीड़ित मूढ प्राणी क्यों नहीं देखते कि, यह अन्यपना जन्म तथा मरणके सम्पातमें सर्व लोककी प्रतीतिमें आता है! अर्थात् जन्मा तव शरीरको साथ लाया नहीं, और मरता है तब यह शरीर साथ जाता नहीं है। इस प्रकार शरीरसे जीवकी पृथक्ता प्रतीत होती है ॥ ५॥ मृतैर्विचेतनैश्चित्रैः स्वतन्त्रैः परमाणुभिः । यदपुर्विहितं तेन का सम्बन्धस्तदात्मनः ॥ ६ ॥ अर्थ-मूर्तीक चेतनारहित नाना प्रकारके स्वतन्त्र परमाणुओंसे जो शरीर रचा गया है उससे और आत्मासे क्या संबंध है? विचारो! इसका विचार करनेसे कुछ भी संबंध नहीं है, ऐसा प्रतिभास होगा ॥ ६॥ इस प्रकार शरीरसे भिन्नता वताई, अव अन्यान्य पदार्थों से भिन्नता दिखाते हैं, अन्यत्वमेव देहेन स्याभृशं यन्त्र देहिनः । तत्रैक्यं वन्धुभिः साध बहिरङ्गैः कुतो भवेत् ॥७॥ अर्थ-जब उपर्युक्त प्रकारसे देहसे ही प्राणीके अत्यन्त . भिन्नता है, तब बहिरंग जो कुटुंवादिक है उनसे एकता कैसे हो सकती है ? क्योंकि ये तो प्रत्यक्षमें भिन्न . दीख पड़ते हैं ॥ ७ ॥ ये ये सम्बन्धमायाताः पदार्थाश्चेतनेतराः। ते ते सर्वेऽपि सर्वत्र खखरूपाद्विलक्षणाः ॥८॥ अर्थ-इस जगतमें जो जो जड़ और चेतन पदार्थ इस प्राणीके संबंधरूप हुए हैं, वे सब ही सर्वत्र अपने २ खरूपसे विलक्षण ( भिन्न भिन्न ) हैं, आत्मा सबसे अन्य हैं ॥८॥ पुत्रमित्रकलत्राणि वस्तूनि च धनानि च । सर्वथाऽन्यखभावानि भावय त्वं प्रतिक्षणम् ॥९॥ अर्थ हे आत्मन् ! इस जगतमें पुत्र मित्र स्त्री आदि अन्य वस्तुओंकी तू निरन्तर सर्व प्रकारसे अन्य-खभाव भावना कर, इनमें एकपनेकी भावना कदापि न कर, ऐसा उपदेश है ॥९॥ अन्यः कश्चिद्भवेत्पुत्रः पितान्यः कोऽपि जायते। ____ अन्येन केनचित्सार्द्ध कलत्रेणानुयुज्यते ॥१०॥ अर्थ-इस जगतमें कोई अन्य जीव ही तो पुत्र होता है और अन्य ही पिता होता है और किसी अन्य जीवके ही साथ स्त्रीसम्बंध होता है । इस प्रकार सब ही संबंध भिन्न २ जीवोंसे होते हैं ॥ १० ॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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