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________________ ज्ञानार्णवः । ३५३ अर्थ-उन तीन पवनों से प्रथम तो यह लोक घनोदधि नाम पवनसे बेढ़ा हुआ है, उसके ऊपर घनवात नामका पवन बेढ़ा हुआ है और उसके ऊपर अन्तमें तनुवात नामका पवन है. इस प्रकार तीन पवनोंसे वेढ़ा हुआ है, इसी कारण इधर उधर हट नहीं सकता किंतु आकाशके मध्यभागमें स्थित है ॥ ५॥ उद्धृत्य सकलं लोकं खशक्त्यैव व्यवस्थिताः । पर्यन्तरहिते योनि मरुतः पांशुविग्रहाः ॥ ६॥ अर्थ-और ये तीनों पवन तीन लोकोंको धारण करके अपनी शक्तिसे ही इस अन्तरहित आकाशमें अपने शरीरको विस्तृत किये हुए स्थित हैं ॥ ६ ॥ घनाधिवलये लोक सेचनान्ते व्यवस्थितः । तनुवातान्तरे सोऽपि स चाकाशे स्थितः स्वयम् ॥७॥ अर्थ-यह लोक तौ घनोदधि नामके वात वलयमें स्थित है और घनोदधि वातवलय धनवात वलयके मध्यमें है अर्थात् घनोदधि वातवलयके चारों और घनवातवलय घिरा हुआ है और घनवातवलयके चारों तरफ तनुवातवलय घिरा हुआ है और तनुवातवलय आकाशमें खयमेव स्थित है. इसमें किसीका कोई कर्त्तव्य नहीं है. अनादिकालसे इसी प्रकारकी व्यवस्था है ॥ ७ ॥ अधो वेत्रासनाकारो मध्ये स्याज्झल्लरीनिभः। । ___ मृदङ्गाभस्ततोऽप्यूर्वं स विधेति व्यवस्थितः ॥८॥ अर्थ—यह लोक नीचेसे तो वेत्रासन कहिये मोढेके आकारका है अर्थात् नीचेसे चौड़ा है फिर घटता २ मध्यलोकपर्यन्त सँकड़ा है फिर मध्यलोक झालरके आकारका है और उसके ऊपर ऊर्ध्वलोक मृदंगके आकारका है अर्थात् बीचमें कुछ चौड़ा और दोनों , तरफ सँकड़ा है ऐसे तीन प्रकारके लोककी व्यवस्था है ॥ ८ ॥ ___अस्य प्रमाणमुन्नत्या सप्तसप्त च रजवः । सप्सैका पञ्च चैका च मूलमध्यान्तविस्तरे ॥९॥ अर्थ-इस लोककी उँचाई तो सातसात राजू है अर्थात् नीचेसे लगाकर मध्यलोकपर्यन्त सात राजू है और उससे ऊपर सात राजू है. इसप्रकार चौदह राजू ऊंचा है और मूलमें चौड़ा सात राजू है. तो घटता घटता मध्यलोकमें एक राजू चौड़ा है और उसके ऊपर बीचमें पांच राजू चौड़ा है और अन्तमें और आदिमें मध्यलोकके निकट एक एकराजू चौड़ा है ॥९॥ १'मृदगसदृशश्चाने इत्यपि पाठः,
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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