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________________ ज्ञानार्णवः। अव आयुःकर्मके विपाकको कहते हैं, उपजाति सुरायुरारम्भककर्मपाकात्संभ्य नाके प्रथितप्रभावैः । समर्थ्यते देहिभिरायुरय्यं सुखामृतस्वादनलोलचित्तैः ॥ १९ ॥ अर्थ-पांचवाँ आयुकर्म है उसके ४ भेद हैं- देवायुः मनुष्यायुः तिर्यगायुः ३ और नारकायुः सो इनमेंसे देवायुः उत्पन्न करनेवाले कर्मके उदयसे प्राणी स्वर्गमें उत्पन्न होकर, विख्यात है प्रभाव जिसका और सुखामृतके आखादनमें आसक्त है चित्त जिसका ऐसा देव हो, स्वर्गके सुख भोगता है ॥ १९॥ उपेन्द्रवज्रा। नरायुषुः कर्मविपाकयोगानरत्वमासाद्य शरीरभाजः। सुखासुखाक्रान्तधियो नितान्तं नयन्ति कालं बहुभिः प्रपञ्चैः॥२०॥ अर्थ-तथा प्राणी मनुष्यायुः नामा कर्मके उदययोगसे मनुष्यत्वको पाकर कुछ सुख, कुछ दुःखसे व्याप्त है वुद्धि जिनकी ऐसे हो, नानाप्रकारके प्रपञ्चोंसे ( कार्योंसे ) काल यापन करते हैं ॥ २० ॥ चरस्थिरविकल्पासु तिर्यग्गतिषु जन्तुभिः । तिर्यगायुःप्रकोपेन दुःखमेवानुभूयते ॥२१॥ अर्थ-तथा प्राणी तियेच आयुःके उदयसे त्रस स्थावर दो भेदरूप तिर्यञ्चगतियोंमें उत्पन्न होकर, केवल दुःख ही दुःख भोगते हैं ॥ २१ ॥ नारकायुःप्रकोपेन नरकेचिन्त्यवेदने । निपतन्यगिनस्तूर्णं कृतार्तिकरुणखनाः ॥ २२ ॥ अर्थ-तथा नारकायुःकर्मके उदयसे प्राणी अचिन्त्यवेदनावाले नरकोंके बिलोंमें जिसके सुननेसे करुणा हो आवै ऐसे शब्द करते हुए उत्पन्न होते हैं और पांचप्रकारके दुःख भोगते हैं ।। २२॥ नामकर्मोदयः साक्षात्ते चित्राण्यनेकधा। नामानि गतिजात्यादिविकल्पानीह देहिनाम् ॥ २३ ॥ अर्थ-तथा जीवोंको नामकर्मका उदय अनेकप्रकारके गति जाति आदि ९३ भेदवाले नामोंको साक्षात् धारण कराता है । नामकर्मकी ९३ प्रकृतियोंका नाम लक्षणादि विशेष भेद गोमठसार ग्रंथसे जानना ॥ २३ ॥ गोत्राख्यं जन्तुजातस्य कर्म दत्ते वकं फलम् । शस्ताशस्तेषु गोत्रेषु जन्म निष्पाद्य सर्वथा ॥ २४ ॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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