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________________ ‘ज्ञानार्णवः। . २६५ हिंसानन्दोद्भवं रौद्रं वक्तुं कस्यास्ति कौशलम् । जगज्जन्तुसमुद्भूतविकल्पशतसम्भवम् ॥ १४ ॥ अर्थ-इस हिंसानंदसे उत्पन्न हुए रौद्र ध्यानके कहनेको किसके कुशलता (विद्वत्ता) है? क्योंकि यह जगतके जीवोंके उत्पन्न हुए सैंकड़ो विकल्पोंसे उत्पन्न होता है. इसके परिणाम अनेक प्राणियोंके अनेक प्रकारके हैं सो कहने में नहीं आ सकते ॥ १४ ॥ हिंसोपकरणादानं क्रूरसत्त्वेष्वनुग्रहं । निस्त्रिंशतादिलिङ्गानि रौद्रे वाह्यानि देहिनः ॥ १५॥ अर्थ-हिंसाके उपकरण शस्त्रादिकका संग्रह करना, क्रूर (दुष्ट) जीवोंपर अनुग्रह करना और निर्दयतादिक भाव रौद्र ध्यानके देहधारियोंके वाह्य चिह्न हैं ॥ १५ ॥ ___ इस प्रकार हिंसानंदनामा प्रथम रौद्र ध्यानका वर्णन किया । अव दूसरे मृषानंदनामा रौद्रध्यानका वर्णन करते हैं, असत्यकल्पनाजालकश्मलीकृतमानसः ।। चेष्टते यजनस्तद्धि मृषारौद्रं प्रकीर्तितम् ॥ १६॥ .. अर्थ-जो मनुष्य असत्य झूठी कल्पनाओं के समूहसे पापरूपी मैलसे मलिनचित्त होकर जो कुछ चेष्टा करै उसे निश्चय करके मृपानंदनामा रौद्रध्यान कहा है ॥ १६ ॥ विधाय वश्चकं शास्त्रं मार्गमुद्दिश्य निर्दयम् । प्रपात्य व्यसने लोकं भोक्ष्येऽहं वाञ्छितं सुखम् ॥ १७॥ ___ उपजातिः। असत्यचातुर्यवलेन लोकाद्वित्तं ग्रहीष्यामि बहुप्रकारं । तथाश्वमातङ्गपुराकराणि कन्यादिरत्नानि च वन्धुराणि ॥ १८ ॥ असत्यवाग्वञ्चनया नितान्तं प्रवर्तयत्यत्र जनं वराकम् । , सद्धर्ममार्गादतिवर्तनेन मदोद्धतो यः स हि रौद्रधामा ॥ १९॥ अर्थ-जो पुरुष इस जगतमें समीचीन सत्य धर्मके मार्गको छोड़कर प्रवर्ते और मदसे उद्धत हो इस प्रकार चिन्तवन करै कि-ठगाईके शास्त्रोंको रचकर असत्य दयारहित मार्गको चलाकर जगतको उस मार्गमें तथा कटआपदाओंमें डालकर अपने मनो: वांछित सुख मैं ही भोगू तथा इस प्रकार विचारै कि-असत्य चतुराईके प्रभावसे लोगोंसे बहुत प्रकारसे धन ग्रहण करूंगा तथा घोड़े हस्ती नगर रत्नोंके समूह सुंदर कन्यादिक रत्न ग्रहण करूंगा । इस प्रकार जो सद्धर्ममार्गसे च्युत होकर असत्य वचनोंकी ठगविद्यासे. अत्यन्त भोले जीवोंको प्रवर्तीवै वह मदोद्धत पुरुष रौद्र ध्यानका · मंदिर (घर) है अर्थात् उसमें मृषानंदनामा रौद्रध्यान रहता है ॥ १७ ॥ १८ ॥ १९ ॥ ३४
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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