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________________ १३८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् प्रथमे जायते चिन्ता द्वितीये द्रष्टुमिच्छति । तृतीये दीर्घनिश्वासाश्चतुर्थे भजते ज्वरम् ॥ २९ ॥ पञ्चमे दह्यते गात्रं षष्ठे भुक्तं न रोचते । सप्तमे स्यान्महामूर्च्छा उन्मत्तत्वमथाष्टमे ॥ ३० ॥ नवमे प्राणसन्देहो दशमे मुच्यतेऽसुभिः । एतैर्वगैः समाक्रान्तो जीवस्तत्त्वं न पश्यति ॥ ३१ ॥ अर्थ - कामके उद्दीपन होनेपर प्रथमही तो चिन्ता होती है कि स्त्रीका संपर्क कैसे हो, दूसरे वेगमें उसके देखनेकी इच्छा होती है, तीसरे वेगमें दीर्घनिःश्वास लेता है और कहता है, कि हाय देखना नहीं हुआ, चौथे वेगमें ज्वर होता है अर्थात् बुखार (ताव ) चढ़ आता है, पांचवें वेगमें शरीर दग्ध होने लगता है, छठे वेगमें कियाहुआ भोजन नहीं रुचता, सातवें वेगमें महामूर्च्छा हो जाती है अर्थात् अचेत ( बेहोश ) हो जाता है, आठवें वेगमें उन्मत्त (पागल ) हो जाता है तथा यद्वा तद्वा प्रलाप करने ( बकने ) लग जाता है, नवें वेगमें प्राणोंका संदेह हो जाता है कि अब मैं जीवित नहीं रहूँगा । और दशवां वेग ऐसा आता है कि जिससे मरण हो जाता है दश वेग होते हैं । इन वेगोंसे व्याप्त हुआ जीव यथार्थ तत्त्व नहिं देखता । जब लोकव्यवहारहीका ज्ञान नहिं रहे तब हो ॥ २९ ॥ ३० ॥ ३१ ॥ । इस प्रकार कामके अर्थात् वस्तुखरूपको परमार्थका ज्ञान कैसे संकल्पवशतस्तीत्रा वेगा मन्दाश्च मध्यमाः । कामज्वरप्रकोपेन प्रभवन्तीह देहिनाम् ॥ ३२ ॥ अर्थ – संकल्पके वशसे और कामज्वरके प्रकोपके तीत्र, मन्द, मध्यम होनेसे ये दश वेग तीत्र, मध्यम और मंद भी होते हैं । सबही एकसे नहिं होते ॥ ३२ ॥ अपि मानसमुत्तुङ्गनगशृङ्गाग्रवर्त्तिनाम् । स्मरवीरः क्षणार्द्धेन विधत्ते मानखण्डनम् ॥ ३३ ॥ अर्थ — जो पुरुष मानरूपी ऊंचे पर्वत के शिखरके अग्रभागपर चढ़ेहुए हैं अर्थात् बलके बड़े अभिमानी हैं उनकाभी मान यह स्मरवीर आधेक्षणसे खंडित कर देता है । भावार्थ - कामकी ज्वालाके सामने किसीका मान नहिं रहता । यह काम नीचसे नीच काम कराकर उसके मानरूपी पहाड़को धूलिमें मिला देता हैं ॥ ३३ ॥ शीलशालमतिक्रम्य धीधनैरपि तन्यते । दासत्वमन्त्यजस्त्रीणां संभोगाय स्मराज्ञया ॥ ३४ ॥ अर्थ - जो बड़े २ बुद्धिमान् हैं वेभी कामदेवकी आज्ञासे अपने शीलरूपी कोटको
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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