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________________ - - - in (1) सद्यायमाला. विचार, विस्तार प्रवचनसारोकार ॥धीरविमल पमित सुपसाय, कवि नय विमल कीधी सद्याय ॥श्ाति सचित्त अचित्त विचार सद्याय संपूर्ण॥ . . . , अर्थ वैराग्य सद्याये॥ :: . . कोज काज न आवे रे उनियांके लोको, कोउ काज़ न आवे ॥ जूठी बातका आनि जरोंसा, पीने से पस्तावे रे ॥ ॥१॥ मतलबकी सव मलि लोकाई, बहोतहिं रंग बनावे रे ।। कु॥२॥ अपना अर्थ न देखे सो तो, पलकों पीव देखावे रे॥०॥३॥ बाजीगरकी बाजी जेसा, अ जब दिमाक देखावे रे॥ ॥४॥ देखो कुनियां सकल खोली है, युही मन ललचावे रे ॥3॥५॥ जिने जान्या तिने श्राप पिलान्या, बे खब री.मुःख पावे रे ॥ ॥६॥ हंस सयाने एक सांसुं उर, काहेकुं चित्त न लावे रे॥ ॥॥॥शति . ॥अथ चैतन्य शिक्षाजास प्रारंज ॥ ॥ आप विचारजो आतमा, ब्रांते शुंजूले अथिर पदारथ उपरें, फोगट शुं फूले ॥ आए॥२॥ घटमांहे बे घरधणी, महेलो मननो नामो ॥ बोले ते बीजो नथी; जोने धरी तामो॥श्राणाशापामीश तुं पासे थकी, बाहेर. शुं खोले | बेसे कां तुं बुडवा, मायानी जैले ॥ ॥३॥ प्रीव्या विण केम पामी, सुण मूरख प्राणी ॥ पीवाये किम पशलीये, फांऊवानां पाणी॥ आ॥४॥ आप स्वरूप न लखे, मायामांहे जूले ॥ गरथ पो तानी गांठनो, व्याजमां जिम मूले । आ-॥५॥ जोतां नाम न जाणि यें, नहिं रूप न रेख ॥ जगमांहे ते केम जड़े, अरूपी अलेख | आ॥ ६॥अंध तणी पेरें आंफले, सघला संसारी॥ अंतरपट आमो रहे, को ण जूवे विचारी ॥आ॥७॥ पहेले पड़ पाडं करी, पड़ी जोने निहा ली॥ नजरें देखीश नाथने, तेहशुले ताली ॥ ॥॥ बंधणहारो को नथी, नथी,बोडावण हारो॥प्रवृत्ते बांधी पोतें, निवृत्ते निस्तारो॥ आ॥ एजेदाजेद बुझें करी, नासे. अनेक ॥. नेद त्यजीने जो नजे, तो दीशे एक ॥आ॥ १०॥ काले धोढुं ने लियें, तो ते थाये बे रंगुं ॥ बे रंगे बुडे सहि, मनं न रहे चंगुं | आप ॥१॥ मन मरे नहि जिहां लगें, घुमे मद घेख्यो । तब लगें जग जूट्युं जमे, न मटे जव फेरो ॥ झा॥ ॥१॥ उघ तणे ज़ोरें करी, शुं मोह्यो सुहणे ॥. अलगी मेली बंधने, खो - - ---
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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