SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - (५४) सद्यायमाला. मनीटेक रे, नवजल तरिया अनेक रे॥ से ॥ ११ ॥ इति॥ . .. . . ॥अथ चेतन शिखामणनी सद्याय॥ ॥चेतन अब को चेतीथे, ज्ञान नयण उघाडी ॥ समता सहजपणुं जज़ो, तजो ममता नारी॥०॥१॥ या उनीयां हे बावरी, जेसी वा जीगर बाजी॥ साथ कीसीके नां चले, ज्युं कुलटा नारी ॥ ॥२॥ माया तरुगया परें, न रहे थिरकारी ॥ जानत हे दिल में जनी, पण क रत बिगारी ॥ चे॥३॥ मेरी मेरी तुं क्या करे, करे कोणशुं यारी॥ पलटे एकण पलकमें, ज्युं घन अंधीयारी॥चे ॥४॥ परमातम अविच ल नजो, चिदानंद आकारी ॥ नय कहे नियत सदा कगे, सब जन सुख कारी॥ चे॥५॥इति॥ ॥अथ आत्मबोधनी सचाय ॥ ॥ हो सुण आतमा मत पड मोहपंजर माहे ॥माया जाल रे ॥ धनरा ज्य जोवन रूप रामा, सुत सुता घरबार रे ॥ हुकुम होदा हाथी घोडा, कारिभो परिवार ॥ माया जाल रे॥ होण॥१॥ अतुल बल हरि चक्री रा मा, जुजोर्जित मदमत्त रे ॥ क्रुर जमवल निकट आवे, गलित जाये स त्त ॥ माया॥ हो ॥२॥ पुहवीने जे मन परें करे, मेरुनो करे दंग रे॥ ते पण गया हाथ घसता, मूकी सर्व अखंग ॥ मा॥हो ॥३॥ जे त खत बेसी हुकुम करता, पेहेरी नवला वेश रे ॥ पाघ सेहेरा धरत टेढा, मरी गया जमदेश ॥मा हो ॥४॥ मुख तंबोलने अधर राता, करत नव नव खेल रे ॥ तेह नर बल पुण्य घाठे, करत परघर टेल ॥ मा॥ हो ॥५॥ जज सदा जगवंत चेतन, सेव गुरुपदपद्म रे॥ रूप कहे कस्य धर्मकरणी, पामे शाश्वत सद्म ॥ मा० ॥ हो ॥ इति॥ __.. ॥अथ आत्मबोधनी सद्याय॥ ॥ सांजल सयणा साची सुणावू, पूरव पुण्ये तुं पाम्यो रे नाइ ॥ नरक निगोदमां नमतां नरजव, तें निःफल केम वाम्यो रे ना ॥ सांग ॥१॥ जैनधर्म जयवंतो. जगमां, धारी धर्म न साध्यो रे ना ॥ मेघघटा सरि खा ग़ज साटे, गर्दन घरमां. बांध्यो रे ना ।। सा॥२॥ कल्पवृक्ष कू हाडे कापी, धंतुरो घेर धारे, रे जा॥ चिंतामणि चिंतित पूरण ते, काग -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy