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________________ श्री पर्यूषण पर्वना नव व्याख्याननी सद्याय. (३५), थापी योध्या नगरी वसावीने रे, थापी राजनीति तिए वाय रे ॥ प्र० ॥ : || रीति प्रकाशी सघली विश्वनी रे, कियो असी मषी कशी व्यवहार रे ॥ एकसो वीश ने नर नारी कला रे, प्रभुजी युगलाधर्म निवार रे॥ प्र० ॥६॥ जरतादिक शत पुत्र सोहामणा रे, बेटी ब्राह्मो सुंदरी सार रे॥ लाख त्राशी पूरव गृदिपणे जी, जोगवी जोग मला मनोहार रे ॥ प्र० ॥ ७ ॥ देव लोकांतिक समय जणावियो रे, जिनने दीक्षानो व्यवहार रे ॥ एक कोटि आठ लाख सोवन दिन प्रत्यें रे, देश वरषीदान उदार रे ॥ प्र० ॥ ८ ॥ चैत्र अंधारी आम आदस्यो रे, संयम मुष्टिये करि लोच रे || श्रेयांस कुमर घरे वरवीपारएं मी, कीधुं श्नुरसें चित्त साचरे ॥ प्र० ॥ ए ॥ सहस्र वर्ष लगे ब्रह्मस्थपणे रह्या जी, पढी पाम्या केवल ज्ञान रे ॥ फा गुण अंधारी ग्यारस दिने जी, सुर करे समवसरण मंमाण रे ॥ प्र० ॥ १० ।। त्यां वेशी प्रभु धर्मदेशना रे, साहनी ने सुणे पर्षदा बार रे ॥ प्रतिवोधाणां केई व्रत ग्रहे जी, के श्रावकनां व्रत बार रे ॥ प्र० ॥ ११ ॥ थाप्या चोराशी गणधर गुणनिला जी, मुनिवर मान चोराशी हजार रे !! साधवी त्रण लाख श्रावक एटलाजी, उपर पांच सहस अवधार रे ॥ प्र० ॥ ११ ॥ पांच लाख चोपन सहस श्राविका जी, थापी चउत्रिह संघ सुजाण रे || महावदि तेरशें मुक्त पधारिया जी, बुध माणक नमे सुवि हारे ॥ प्र० ॥ १३ ॥ वांचे विस्तारे मुनिवरा वली जी, मूक्युं धाठमुं वखाण इ ठाम रे || बुधश्री कमाविजयजी गुरु तणो जी, करे माणक मुनि गुणग्राम रे ॥ प्र० ॥ १४ ॥ ॥ अथ नवम व्याख्यान सद्याय प्रारभ्यते ॥ ॥ ढाल अग्गारमी ॥ जरत नृप जावशुं ए ॥ ए देशी ॥ संवत्सरी दिन सांजलो ए, वारसी सूत्र सुजाण ॥ सफल दिन आजुनो ए ॥ए श्रकणी ॥ श्रीफलनी प्रभावना ए, रूपा नाएं जाए ॥ स ॥१॥ सामाचारी चित्त धरो ए, साधु तो आचार ॥ स० ॥ वडलहुडाइ खामणां ए, खामो सदु नर नार || स० ॥ २ ॥ रीष वशे मन रूषणां ए, राखीने खमावे जेह ॥ ० ॥ कोयुं पान जिम काढवुं ए, संघ बाहेर सहि तेह ॥ स० ॥ ३ ॥ गलित वृषण वधकारकु ए, निर्दय जाणी चित्र ॥ स० ॥ पंक्ति बाहिर | ते कह्यो, ए, जिम महास्थानें क्षिप्र || स० || ४ || चंदनबाला मृगावती
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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