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________________ श्रीपyषणपर्वना नव व्याख्याननी सद्याय. (३५३) - - - - - - -- - - - -- - - - - - - - ॥ श्रथ द्वितीय व्याख्यान सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥प्रथम गोवालातणे नवे जी॥ए देशी ॥ इंश विचारे चित्तमां जी, ए तो अचरीज वात ॥ नीचकुले नाव्या कदा जी, उत्तम पुरुष अवदात ॥१॥ सुगुण नर, जुर्ज जुर्ड कर्म प्रधान ॥ कर्म सबल बल वान ॥ सु। जुम् ॥ ए आंकणी ॥ आवे तो जन्मे नहीं जी, जिन चक्री हरिराम ॥ उग्र लोग राजनकुले जी, आवे उत्तम गम ॥ सु॥॥का ल अनंते ऊपनां जी, दश अरां रे होय ॥ तिणे अवेरुं ए थयुं जी, गर्न हरण दशमाहे ॥ सु०॥३॥ अथवा प्रजु सत्यावीशमा जी, नवमांत्री जे जन्म ॥ मरीचिजव कुलमद कियो जी, तेथी वांध्यु नीच कर्म ॥ सुण ॥४॥ गोत्रकर्म उदये करीजी, माहराकुले उययाय ॥ उत्तमकुले जे अ चतरे जी, इजिजीत ते थाय ॥ सु॥५॥हरिणगमेपी तेडीने जी, हरि कहे एह विचार ॥ विप्रकुलथी लेश प्रजुजी, क्षत्रिय कुले अवतार ॥ सुप ॥६॥राय सिझारथ घर नली जी, राणी त्रिशला देवि ॥ तास कुखे अवतारिया जी, हरिसेवक ततखेन । सु॥७॥ गज पत्नादिक सुंदर जी, चौद सुपन तिणि वार ॥ देखी राणी जेहवां जी, वर्णव्यां सूत्रे सार ॥ सु॥७॥ वर्णन करी सुपनतणुं जी, मूकी वीजें वखाण ॥ श्री दमा विजय गुरुतणो जी, कहे माणक गुणखाण ॥ सु० ॥ ॥ इति । ॥अथ तृतीय व्याख्यान सचाय प्रारंजः ।। ॥ ढाल चोथी । महारी सही रे समाणी ।। ए देशी॥ देखी सुपन तव जागी राणी, ए तो हियडे हेतज आणी रे ॥प्रजु अर्थ अकासे ॥ए आंक णी ॥उनीने पियु पासे ते आवे,कोमलवचने जगावे रे ॥३०॥१॥ कर जो डीने सुपन सुणावे,नूपतिने मन नावे रे ॥प्रणा कहे राजा सुण प्राण पिया री, तुम पुत्र होशे सुखकारी रे ॥प्रणा॥ जार्ज सुजगे सुखसजाये, शयन करोने सजाये रे ॥प्रणा निज घर आत्री रात्रि विहाइ, धर्मकथा कहे बाई रे।। प्र०॥३॥ प्रात समय थयो सूरज उदयो, उठ्यो राय उमायो रे ।। प्रण॥ कौटुंबिक नर वेगे वोलावे, सुपानपाठक तेडावे रे॥प्र०॥४॥था| व्या पाठक आदर पावे, सुपन अर्थ समकावे रे ॥ द्विज अर्थ प्रकासे ।। ॥ ए आंकणी ॥ जिनवर चक्री जननी पेखे, चौद सुपन सुविशेषे ॥ वि० ॥५॥ वासुदेवनी माता सात, चार बलदेवनी मात रे॥ विणा ते माटे ए - - - - - - - - - - - - - - - ४५
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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