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________________ श्रीविष्णुकुमार मुनिनी सद्याय. (३४५) - --- - - - - - - - - - - -- - - - ॥सोरग। । संवाह वस्तीप्रमाण, चौद सहस्र सब मिल गएयु ॥ अन्नरक्षणनां स्थान, सहस्र नवाणुं प्रमुख कह्यां ॥१॥ वेलाउल सहस बत्तीस, संख्या कढुं सूत्रधारनी॥ चौसठ लाख सुजगीश, वेठी सामान्य साठ कोडि ॥ ॥नोजनस्थानक मान, तीन लाख सुंदर कह्यां। उद्याननूमि ते जाण, पचिश सहस निर्मल कही॥३॥ तृपसेनापति सोय, चोवीस सहस सव मलि हवा ।। सामान्यमंत्री होय, कोटि तीन कर्मे जुवा ॥४॥ ॥ ढाल नही। ॥जीरे महारे लोन ते दोष अथोन, पापस्थानक नवमुं का।। जीरे जी ॥ए देशी ॥ जीरे महारे॥महापद्म नृप संग, चाले गोकुल मलपतां ॥जीरे जी॥जीर महारे ॥ एक कोटिशुं प्रमाण, सुरधेनुं परें पूजती ॥जी॥१॥ जीणा उपद चउपद हजार, गामां वहाँतर कोडिने॥जी॥जी॥ मं दिर नवाणुं हजार, वैद्य कोड तीन जोडें ॥जी॥ ॥जी॥ वहोतेर योजन मान, वाण चाले जस नित्यप्रत्यें ॥ जी० ॥जी० ॥ सवा कोड सुत जाण, सेवा सारे दिनप्रत्ये ॥जी॥३॥जी॥ सारथवाह सुजा ण, कोड तीन नृप मानिया ।। जी० ॥जी॥ अंगमर्दन राजान, सहस त्रीस सहु जाणिया ॥जी॥४॥ जी० ॥ नृपमन रंजनहार, चौद हजार कह्या वली ॥ जी० ॥ जी० ॥ नगरशेठ पद धार, सह्या तीन कोडि मली ॥ जी० ॥ ५ ॥जी॥ जलपंथ मार्ग विज्ञानि, चौद हजार प्रमाणियें ॥ जी ॥ जी० ॥ अग्यार सहस सन्निवेश, बप्पन्न अंतरद्वीप आणि ॥जी॥ ६ ॥ जी० ॥ राजधानीनां मान, हजार उनीस कह्यां सह ॥ जी० ॥जी॥ पंव अहावीश लाख, लाख कोट वाल श्रुतथी कह्या ॥ जो॥७॥जी० ॥ र देश राजान, गुण पंचास साथै रहे ।। जीजी० ॥ सहस्र पचवीसं यद देव, सेवा करे जिनवर कहे ॥जी॥ ॥जी॥ सहस बत्रीश महाजूप, करजोडी आगल रहे ॥जी॥ जी० ॥ महामंत्रीश्वर नूप, चौद सहस राज निर्वहे ॥जी० ॥ए ॥जी॥ सूडा चोराशी लाख, पालता आगल वहे ॥जी॥ जी श्वान रहे आठ कोड, सिंहज पण शंका लदे ॥जी॥ १० ॥जी॥ माहाव्यापारी साथ, कोटि सत्त श्री अनुसरें। जी० ॥जी॥ एक रसो - - - 3
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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