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________________ (३२३) .सद्यायमालाः । तमने करे रे, मुफ तुम उपर राग रे ॥ वा ॥ मुण् ॥ ६ ॥ दांत जे । लोहज सारिखा रे, जीन तडग्रह जाण रे ॥ वाण || तेणे कारण वर्जु बलं रे, रखे लीये ताहारा प्राण रे ॥ वा० ॥ मु० ॥ ७॥ एम ए त्रणे बागा रे, सर्व काल गहगाट रे ॥ वाण ॥ सुखशाता घणी पामशो रे, जो जो माहारी वाट रे ॥वा ॥ मु०॥७॥ एम शीखामण देकरी रे, कहीने वारो वार रे ॥ वा ॥ रयणादेवी वली संही रे, वांसे एकल डा निर्धार रे॥ वाण ॥ मु॥ ॥ इति ॥ ॥दोहा॥ ॥बेहु नाश हवे चिंतवे, शार्ति मनमां थाय ॥ सुख पामे जेम श्रातमा, पूर्वबालमें जाय ते ल पछिम ते उपजे, पण न पामे वैराग ॥ मांहोमांहे ते एम कही, चाच्या दक्षिण बाग ॥ २ ॥ तेमां पुगंध ने घणो, हाड पड्यां धणां त्यांय ॥ शूलीये पुरुष देखीने, संधाण ढीलां थाय ॥३॥ कोण नगरी क्लता हता, केम फुःख सह्यां अपार ॥ कोण अन्याय तमे कस्यो, शूलीये दीधा चडाय ॥४॥ हुं कामीनो वाणीयो, घोडा क्हेचण आय ॥ वाण नांग्युं आंही आवीयो, रयणा वश पड्यो आय ॥५॥ संसारनां सुख जोगव्यां, कालज केतो जाय ॥ तमो एहने हाथे चड्या, मने शूलीयें दीधो चडाय ॥ ६ ॥ जो जाउँ चंपानणी, तों पूर्व बागमां नाश् ॥ शीलंग यक्ष पग जालशे, तो घर देशे पहोंचा॥७॥ . . ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥वीबुवानी देशीमां ॥ हांरे लाल दोनुं ना रोवे घणा,, ए तो ज़ूमी दीसे ले नार रे लाल । जो आपणी माता जाणशे, तो देशे आपणने मा र रे लाल ॥ नारीशु नेह न कीजीये॥१॥ए आंकणी ॥ हारे लाल पू रव बागमा आवीया, यद आव्यो तेणी वार रे लाल ॥ केहने उतारं हां थकी, कोणने उतारं पार रे लाल ॥ नारी॥२॥ हां ॥ हाथ जोडीने एम कहे; अमें पुःखीया दोनुं जाशेरे लाल ॥ कृपा करो अम ऊपरें, अबलाथी पार उतार रे लाल ॥ नारी॥३॥ हां ॥ नारीनों मोह मत आणजो, हुं महारे बंगले बेसाडं रे लाल | जो मन तमारं मोलशे, तो तुमने तेवार पाडं रे लाल ॥ नारी॥४॥ हां ॥ धीरज दश्ने | - । - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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