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________________ - - - - - - - - श्री नपशमं सद्याय. (३१७) श्रावशे ए, बीजुं धन श्रसार तो॥ई ॥ शक्ति सारु दीजीयें ए, 'नित्य गणी नवकार तो ॥ महोटा माणस एम कहे ए, नभे न होये नीच खगार तो॥३ए । संवत शोल उगणोत्तरें ए, शुदि श्रावण तिथि बीज तो॥ ए विनति पब्बो नणे ए, श्रीजिनवर अवधार तो॥४०॥ पाप कर्म जे में कीयां ए, तेथी मूकावे ने तो ।। जीव अनेक विराधीया ए, कोदाला हल देव तो॥४१॥ परनी निंदा में करी ए, जोयु जूंनी दृष्टि तो। बूडतांने वांदे कालीयें ए, तारक तुंहीज इष्ट तो |शा मानव जव श्रावी करी ए, अरिहंत तुं श्राधार तो ॥ जे सेवे कारज सवि सरे ए, तेहवा समस्या चार तो॥४३॥ शंखेश्वर स्वामी नलो ए, महावीर जिन जाण तो ॥ गौतमस्वामी गुरु जलो ए, जीरावलो जगलाण तो ॥४४॥जे प्रणमे पातक टले ए, सफल थाये अवतार तो ॥ विनतडी पव्यो जणे ए, श्रीजिननामें जयकार तो ॥ ४५ ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीउपशम सद्याय प्रारंनः ॥ ॥ नंगवति नारति मन धरी जी, प्रणमी गौतम पाय ॥ सहगुरु च रण पसानले जी, कई उपशम सञ्चाय रे प्राणी ॥ आणने नपशम सार। जे विण तप जप स्वप करी जी, चारित्र हवे बार रे ॥प्राणी ॥ आ ॥ १॥ ए श्रांकणी उपशमथी संकट टले जी, उपशम गुणह नंमार ॥ उपशमथी शिवसुख मले जी, उपशमथी नवपार रे प्राणी ॥ आप ॥२॥ उपशम संयम मूल ले जी, उपशमें संपदकोड ॥ वैरी वैर विना थजी , आगल रहे कर जोड रे॥ प्रा॥आ ॥३॥रीष वशें परवश थयो जी, दारे ये घडीमांय ॥ चारित्र पूरवकोडीनो जी, गणधरनी एम वाय रे ॥ प्राण ॥श्रा ॥ ॥ क्रोधवृद कडूया तणा जी, विषम फूल फल जाण ॥ फूलथकी मन परजले 'जी, फलथकी होय धर्महाण रे॥ प्राण ॥ आ ॥ ५॥ विरुन वैरी करे जी, मारे एकज वार । क्रोध रूप रिपु जीवने जी, दीये अनंत संसार रे ॥ प्राण ॥श्रा॥ ६ ॥ जो कोइ वार को दीये जी, आपणपाने गालं ॥ ते उ पर उपशम धरी जी, वलतुं वचन म वाल रे ॥माण ॥ आ० ॥७॥ मनमांद मत्सर धरी जी, कीजे क्रियाकलाप ॥ ते रज उपर लीपणुं जी, जिम वली राने विलाप रे ॥प्रा० ॥ श्रा०॥ ॥ राई सरशव - - - - - - - - -- - - - - - - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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