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________________ उत्तराध्ययननी सद्याय. (४३) - ४॥ पुरनिगंध त्रण पहेलडी, त्रण आगली रे सुगंध ॥ कुगति त्रण पहे सी दिये, सुगति त्रणथी बंध ॥ 3 ॥५॥ ए लेश्या रे चउत्रीशमे, अ ध्ययने कहे वीर ॥ तेमां उत्तम आदरे, लबी वरे मुनि हीर ।। ब॥६॥ विजयश्व गुरु पाटवी, श्रीविजनसिंह सूरिश ॥ तेहतणो वलि उपदिशे, | उदय कहे सुजगीश ॥ ब० ॥ ॥ इति ॥ , ॥अथ पंचत्रिंशत्तम अणगारमार्गाध्ययन सद्याय प्रारंजः॥ ॥ निःस्नेही तुमही नये ॥ ए देशी ॥ वीर कहे नवि लोकने, पालो मुनि आचार राजे । अध्ययने पंचत्रिंशमे, तेह तो अधिकार राजे॥ वी० ॥ १ ॥ पापारंच निपेधीयें, धरियें संयम धीर राजे ॥ वसति विशुद्ध सेविये, एम लहिये गुण हीर राजे । वी॥२॥ त्रस स्थावर नवि हिं सिये, मृपावाद परिहार राजे ॥ अण दीधुं नवि लीजियें, धरियें बन उदार राजे । वी० ॥ ३ ॥ परिग्रह परिमित कीजिये, राखियें जय शुन ध्यान राजे ॥ एणि परें धर्म समाचरे, तस घर नवे निधान राजे॥वी ॥ ४॥ विजयदेव गुरु पाटवी, विजयसिंह मुनिराय राजे ॥ शिष्य तेहनो उपदिशे, उदय विजय उवजाय राजे । वी० ॥ ५॥ इति ॥ ॥अथ षट्त्रिंशत्तम जीवाजीवविनताख्याध्ययन सद्याय प्रारंजः।। ॥ ढाल धमालनी ॥ सोहम खामी एम कहे रे, सुण जंबू अणगा। वीर जिणेसर नांखियो रे, जीव अजीव वीचार॥१॥ परमारथ परिचय कीजीयें रे, लीजें प्रवचन सार ।। शुज नाण अमीरस पीजीयें रे, पामीजें नवपार ॥५०॥ए आंकणी ॥ जीव अजीव दोश् वर्णव्या रे, लोकालोक मकार॥ जीव अरूबी तेहसां रे, जाणो दोश् अजीव प्रकार | पणा पुजल रूपी ए कह्यो रे, आकाशादिक अरूप ॥ संदेपथी अजीवनुं रे, वरणव्यु एह स्वरूप ॥ १० ॥३॥ जेद सुण्या दोश् जीवना रे, सिझ अने नववास ॥ जेद पन्नर तो सिझना रे, जेह मख्या अलोक आकाश ॥ प॥४॥ पुढ वी जल जलणानिला रे, वणसे वि ति चन पंच॥ इजिय माने नव तण रे, जाणजो सूत्र प्रपंच ॥ पण ॥५॥ ए सवि नाब जिणेसरें रे, जांख्या नविहित काज ॥ सूधा सद्दहतां थकां रे, पामी अविचल राज ॥ प० ॥६॥विजयदेव सूरीश्वरु रे, पद प्राजाविक सिंह।। विजयसिंह मुनिराजियो रे, सुविहित गणधर लीह ।। प॥७॥ तास नाम सुपसाउले रे, एब - - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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