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________________ उत्तराध्पयननी सद्याय. (३३५) - - ApamananRIKA - - - - -- ॥२०॥ गुणरागी उपशमरस रंगी, विरतिप्रसंगी प्राणी जी ॥ साची स इहणाशुं धारे; समकित ए सहि नाणी जी ॥ निंदा न करे वदने केहनी, बोले अमृतवाणी जी ॥ अपरंपारजवजलधि तरेवा, शमता नाव समाणी जी ॥१॥श्रीजिनशासन. नासन सुंदर, बोधिवीजसुखकारंजी ।। जीव दया मनमांहे धारो, करुणारस जंडार जीए सफाय जणी ने समजो, उसम समय विचार जी ॥ धीरविमल कविराज पसायें, कविनय विमल जयकार जी॥२॥ इति ॥ . . . . . ॥अथ श्री उदयवीजयजी कृत उत्तराध्ययनपट्त्रिंश सद्यायोः प्रारज्यते॥ ॥ तत्र प्रथम विनयाध्ययन सवाय प्रारंजः॥ ॥श्रीनेमीसरजिनतणुं जी ॥ ए देशी॥ पयत्रण देवी चित्तधरी जी, वि नय वखाणीश सार । जंवूने पूढे कह्यो जी, श्रीसोहम गणधार ॥ १॥ नविकजन विनय वहो सुखकार ।। ए आंकणी ॥ पहिले अध्ययने कह्यो जी, उत्तराध्ययन मजार ॥ सघला गुणमा मूलगो जी, जे जिनशासन सार । नविण ॥२॥ नाण विनयथी पामीयें जी, नाणे दरिसण शुद्ध ॥ चारित्र दरिसणथी हुवे जी, चारित्रथी पुण सिद्धि ॥ ज० ॥३॥ गुरुनी आण सदा धरे जी, जाणे गुरुनो नाव॥ विनयवंत गुणरागीयो जी, ते मु निसरज सनाव | ॥४॥ कण- कुंठं परहरी जी, विष्टाशुं माने राग ॥ गुरुखोही ते जाणवा जी, सूअर ऊपम लाग ॥ ज०॥५॥ कोह्या कान नी कूतरी जी, गम न पामे र जेम ॥ शील हीण अकह्यागरा जी, आद र न लहे तेम ॥ ज०॥६॥चंदतणी परें उजली जी, कीरति तेह लहंत ॥ विषयकषाय जीती करी जी, जे नर विनय वहंत ॥ ज० ॥ ७॥ वि जयदेव गुरु पाटवि जी,श्रीविजयसिंह सूरिंद॥शिष्य उदयवाचक जणे जी, विनय सयल सुखकंद ॥ ॥ ॥ इति ॥ ॥अथ द्वितीय परिसह अध्ययन सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ शांतिसुधारस कुंक्रमां॥ए देशी ॥ सोहमसामि जंबूप्रते, उपदेशे ध में सुविचार रे ॥ उत्तराध्ययन वीजें कह्यो, परिसहतको अधिकार रे॥१ ॥ इजियजय तुम्हें आदरो॥ए आंकणी ॥ जिम लहो सुख संसार रे॥ अनुक्रमे नाण किरिया थकी, शाश्वतांसुख सहोसार रे॥ ॥२॥ खुह तृषा सीतनें तावडो, मंस अचेल तिमहोय अरतिरति नारिचर्या वली, - - - - - - शए
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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