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________________ मणिचंकृत वैराग्यकारक सद्यायो. (३१) - - - - - Munnamond - - ॥अथाष्टादश पन्नरतिथिनी सद्याय प्रारंजः॥ . ॥शुक्लपद पडवेथी निश्चल, धर्मकला तस वाधे जी॥ विविध विघन बीजे उविध धर्म, यति श्रावकनो साधे जी ॥२॥त्रीजे त्रण तत्त्व थारा धो, चारित्र दर्शन शान जी ॥ चोथे चीर नावना नावो, मैत्रादिक शुन्न ध्यावोजी॥॥ पंचमीये नाण पंच पामे, पंचमगति पहुंचावे.जी॥ ये नही लेश्या आणे, काय रखावे जी॥शा सप्तमी सप्त जय निवारी, सातेसुख नपजावेजी ॥ अष्टमीयें अष्ट कर्म निवारी, सिद्धना आठ गुण || पावे जी ॥ ४॥ नवमीयें नव तत्त्व विचारी, नववाड ब्रह्मव्रत राखे जी॥ दशमीयें दशविधसंयम पाली, दशरुचि समकित राखे जी ॥५॥ एका दशें एकादश अंगा, श्रावक एकादश पडिमाजी ॥ हादशमुंडादशमी ये, साधुनी द्वादश पडिमाजी ॥६॥ तेरशीये तेर काठिया वारि, तेर कि या निवारे जी ॥ चनदशीयें चनद पूर्व आराधो, चनद राज पार उतारे जी॥७॥ पन्नरशीय योग पनर निवारी, संज्ञा पन्नर बांगो.जी ॥ कृष्णप क्षपडवेथी लेडी कला, अमावास्यातां जाणोजी || G॥ शुक्लपक्षथी चढ तो कला, सही धर्मतणी वखाणी जी ॥ कृष्णपदनी पडसी कला कही, मणिचं एह लखाणी जी ॥ ए॥ इति । ॥अथैकोनविंशति सद्याव प्रारंजः॥ ॥ राग केदारो गोडी ॥ मित्र कहीजें कुतत्व वाघानो, यथास्थिति नाव नावे ॥ आसना अव्यपद्यविपर आश धरावे, अनंतानुबंधीयो हठ क रावे ॥१॥ गुणवंत जाण्यो तोहे देष आवे, मुहर्त्तथी मांगी जावजीव क हावे॥ अनंतानुबंधीयो क्रोध आवे, नषानुबंधी ते मुर्गति पावे ॥२॥ गुण वंत प्रतिदेख्याथी हीणो, अवगुण आगस करी खूवे दीणो॥माने चढ्यो निज पराक्रम वोले, दुर्गति तणुं वारहुं ते खोखे ॥३॥ धर्म थोडो करी वहु प्रकासे, आपे एम जाणे मेरो यश नासे, धर्म देखाडी ठरो बहु खोक, अनंतानुवंधी माया करे फोक ॥ ४ ॥ परवस्तु अपनो करीने माने, नगमे रंगाये रह्यो निज गणे ।। लोनसागर पूरो नवि थावे, तृष्णायें करी छ गति जावे ॥५॥ ए अनंतानुबंधी का चारे, एकनी मुख्यतागुणता त्रण धारे ॥ नरकनिगोद पहुंचाडे नाई, हारीने जाये आपणी ठकुराई॥६॥ यथास्थितिलव उपर मन रंजे, गुण जाएया पड़े ते न गंजे ॥.धर्मे माया - -- -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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