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________________ (१७) संद्यायमाला. मिशय्या व्रत याग ॥ गुण ॥ सुकर सकल ने साधुने । सु। पुष्कर मायात्याग । गुण॥३॥ नयन वचन आकारर्नु ॥ सु०॥ गोपन मायावंत ॥ गुण ॥ जेह करे असती परें। सु॥ ते नहि हितकर तंत ॥ गु० ॥ ॥ ४ ॥ कुसुमपुरे घर शेठने ॥ सु०॥ हे रह्यो संविज्ञ॥ गुण ॥ ऊपरें त स बीजो रह्यो । सु॥ मुत्कल पण सुगुणज्ञ ॥ गुण ॥ ५॥ दंनि एक निंदा करे। सु। बीजो धरे गुण राग ॥ गु०॥ पहेलाने नव उत्तर कहे ॥ सु॥ बीजाने कहे वली ताग ॥गुण॥६॥ विधि निषेध नवि नप. दिशे ॥ सु ॥ एकांते नगवंत ॥ गुण ॥ कारणे निःकपटी हवू ।। सु॥ए आणा तंत ॥ गुण ॥ ७॥ मायामी अलगा टलो ॥ सु॥ जिम मलो मुगति सुरंग ॥ गुण ॥ सुजस विलास सुखी रहो ॥ सु०॥ लक्षण आवे अंग ॥ गुण ॥७॥श्त्यष्टम माया पापस्थानक सवाय समाप्त ।। ॥अथ नवम लोन पापस्थानक सद्याय पारंजः॥ ॥ जीरे मारे जाग्यो कुमर जाम ॥ ए देश। ॥ जीरे मारे लोन से दोष अथोन्न, पापस्थानक नवमुं का ॥ जीरे जी ॥जी॥ सर्व विनाश म ल, एदयी कोणे न सुख लद्यं ॥ जीरे जी॥१॥जी॥ सुपीयें बहु लो नांध, चक्रवर्ति हरिनी कथा || जीरे जी॥जी॥ पाम्या कटुक विपाक, पीवत रक्त जलो यथा ॥जी॥॥जी॥ निर्धनने शत चाह, शत लहे सहस लोडिए ॥जी॥जी॥ सहस लहे लख लोन, लख लोन्ने मनकोडियें ॥जी॥३॥जी॥ कोटीश्वर नृपशाह, गृप चाहे चक्रीपणुं ॥जी॥जी॥ चाहे चक्रि सुरनोग, सुर चाहे सुरपति सुख घगुं ॥जी॥४॥जी॥ मूल लघुपणे लोन वाधे, सर्व परे सही ॥जी॥ जी०॥ उत्तराध्ययने अनंत, हा आकाश समि कही ॥जी॥५॥ जी॥ स्वयंनुरमण समुह, कोश्क अवगाही शके ॥जी॥जी॥ ते पण लोल समुह, पार न पामे बल थके ॥जी॥६॥जी॥ कोश्क लोजने हेत, तप श्रुत हारे जे जड़ा । जी०॥जी॥ काग नडावण देत, सुरमणि नाखे ते खडा ॥जी॥ ॥जी॥ लोन तजे जे धीर, तस सवि संपत्ति किंकरी ॥जी॥जी॥सुणस सुपुण्य विलास, गावे तस | सुर सुंदरी ॥जी॥७॥इति नवम लोन पापस्थानक सद्याय ॥ .
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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