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________________ षडावश्यकनी सद्याय. (३११) - - - - - - - - - - - - - - रका ते वंदन काण ॥ १५ ॥ चोरी तर्जित हेलना रुष्ट, ग्लानिविकथा करदृष्टादृष्ट ।। नृपकर हीण मोचन अस्पर्श, अधिक कर कर शिर संस्प शे ॥ १५ ॥ मूक रजोहरण नमाडि, ए वत्रीशे खूषण बांमि ॥ एणी परें वांदणां देतां सार, कृष्णपरें होये लाल अपार ॥ १६॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ यत्तिनी देशी ॥ ॥पडिकमण अध्ययन मकार, एकादिक तेत्रीश सार ।। आशातना गु रुनी तेत्रीश, सांजलजो नवियण सुजनीश ॥१॥ गुरुने आगल पाबल पासें, दुकडो चाले वेसे पासें । उन्नो रहे एमत्रण त्रि नव, पाणी गुरुप हेलु शिष्य लेव ॥॥ गुरु पहिलो श्रावक बोलाव, गुरु पहिलो आलो याव ।। गुरुने अणदेखे यालोय, वीजाने देले आलोय ॥३॥ गुरु विण वीजाने निमंत्रे, गुरु पूठ्या विण वीजाने निमंत्रे ॥ स्निग्ध मधुर खय नक्षण करतो, निशि वोलावे मौन धरतो॥४॥ वीजे कार्य उत्तर नवि दीये, तेड्यो तनयी उत्तर दिये ॥ गुरु पूढे मस्तक वंदेश, गुरुने तुकारे बोले ॥ ५॥ कार्य कहे ते किम न करेश, कर्कश बचन कही सपरे ।। दौर्मनस्य कथाछेदन, गुरुपद घटन पर्षदा जेदन ॥ ६ ॥ क्षण उठे पोते कण करे, गुरु संथारे वेसे सुए ॥ गुरुथी जंचे आसन नेसे, समासन वेसे सुविशेषे ॥ ७॥ नसतुं यथाजात वे वार, शिरने नमवू चऊ वार ॥ त्रण्य गुप्त वारह आवर्त, उयवेश एक निर्गत्य ॥७॥ पंचवीश आवश्यक ए कहीया, गुरु शिष्यना षट वच लहीया ॥ दोष पट तेम षट् ले गुणा, योग्य अयोग्य पणे वंदन नया ॥ ए॥मण तण वयण कृत का रित्त, अनुमोदन उपयोग पवित्त ।। शुज नावें करो पच्चरकाण, षट आवश्यक पूरण जाण ॥१०॥ रयणत्रय शून्य जे आया, इण वासित करो नवि राया ॥ शुभातम गुण तव प्रगटे, जेम रविथी कजबंध विघटे ॥ ११ ॥ एह आतम शुद्ध करेवा, मुनि वहुयें ए चित्त धरेवा ।। तदा ज्ञानादिक गुण सार, वरलही शिव सुख अपार ॥१२॥ इति ॥ ॥ ढाल चोथी । चोपानी॥ ॥ श्रागल पूर्वाचार्य विशेष, सामायिक पालण सुविशेष ॥ संजायुं असंजायुं होय, ते संजारी आगल जोय ॥१॥ निक्षेपा नय कारण जाण, उत्पाद व्यय ध्रौव प्रमाण ॥ देय ज्ञेय अव्य ने तत्व, आवश्यक प्रत्येकें - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - --
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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