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________________ अध्यात्मनी संघाय. (ए३) । - पापसंघातें माया मामे, मोह तणे वश पडियारे॥ माहरु माहरुं करता हीमें, ते नर कमै नडिया रे ।। मू० ॥ ३ ॥ अहंकारीने लोन घणेरो, मनमा राखे कातीरे जीवतणी जयणा नहिं जाणे, ते सरिखो नहि घाती रे ।। मू॥४॥ रुडं कहेतां रीष चढावे, राचे मूरख सार्थे रे ॥ पाप तणी गांउडली बांधी, मरवू ली, माथे रे । मू ॥ ५॥ घोडा वहे ल पालखीये चढवं, जोय पगढुं नवि धरवू रे ॥ जातजातनां जोजन क रवां, तो, ए आखर मरवू रे ॥ मू० ॥ ६॥ हाथीनी अंबाडीयें चढवू, | उपर बत्र ते धरवू रे ॥ आगल पाला झोड करे पण, तो ए आखर मरQ रे ॥'मू॥ ॥ नोवत ने निशान गडगडे, हाकम थश्ने फरवु रे ॥ आगल हाथी वेसण हाथी, तोये आखर मर रे ॥ ॥ ॥ गर्वे मातो अव्ये तातो, मारु मारं करवु रे । रली रली नंमारज जरीया, तो पण आखर मरवू रे॥ मू॥ए॥ मंदिर मालियां गोख जालियां, मेडी उपर चढवु रे ।। सुंदरस्त्रीशु नोगे जोगवता, तोए आखर मरवु रे ।। मू० ॥१०॥ परमातमशुप्रीति वनावो, नीच संग न करिये रे ॥ सुमतिमंदि रमां वासो वसिये, तो नवसायर तरी रे ॥ मूग ॥११॥ नाना महोटा राजा राणा, सहुनो मारग एक रे ॥ मूरख कहे धन मारुंमारं, पण मेली जावुरे बेक रे।। मू॥१२॥शीयल अमूलक बगतर पेरी, जीतो मोह मेवासी रे ॥ उर्जनथी जो रे रहीयें, तो थश्य सुखवासी रे ॥ मू॥ १६ ॥ केवलरूपी साहेव मेरा, तास नजनमा रहियें रे ॥ नित्यवान कहे प्रजु गोडी पारस, तेहथी अनुभव लहियें रे। मू॥ १४ ॥ ॥अथ अध्यात्म सद्याय ॥ राग काफी ॥ . ॥ किसके चेले किसके वे पूत, आतमराम एकिले अवधूत ॥ जीव जान ले ॥ अहो मेरे ज्ञानीका घर सूत, दिल मान ले ॥१॥ आया ए किला जावेगा एक, आप खारथी मलिया अनेक ॥जी॥मटिय गरी दकी जूठ गुमान, आजके काल गिरेगी निदान ॥जी॥२॥ तृष्णापा वलडी वर जोड, बाबु काहेकुं सींच्यो गोर ॥जी॥यागें अंगीठी नावे गी साथ, नाथ रहोगे खाली हाथ ॥जी॥३॥ आशा जोली पोतरां लोन, विषय जिदाचर नायो थोज ॥जी॥ कर्मकी कंथा मारो पूर, वि नय विराजो सुख जरपूर ॥ जी०॥४॥ इति ॥ - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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