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________________ बारजावनानी सद्याय. (१५) - - - - - - - - - - - - गले, ऊतरे मोहपद ताव रे ॥ जाण ॥७॥ जे पदारथ तुऊ आपणो, नवि गणे प्रेमरतिबंध रे ।। जो गणे ते हतुं आपणुं, जीव तूंही मति अंध रे।। ना॥ ॥ कृष्णलेश्यावशें कीजीयें, कर्म जे रौषपरिणाम रे ॥ ते सवे धर्म नवि जाणिये, शुन्न हवे शुद्ध परिणाम रे॥ना ॥ ए॥ जे जग आ श्रव जिनें लण्या, ते सवे संवर होरे। धर्म जे अशुल ना करे, ते तस || आश्रव जो रे ॥ ना ॥ १०॥ शति पीठिका ॥ ॥अथ प्रथमा अनित्यनावना ॥ ढाल त्रीजी॥ राग रामग्री॥ ॥ मूंऊ मां मूंऊ मां मोहमां जीव तुं, शब्द वर रूप रस गंध देखी॥ अथिर ते अथिर तूं अथिर तनु जीवितं, जाव्य मन गगन हरि चाप पेखी ॥ ॥१॥ लडि सरियतति परें एक घर नवि रहे, देखतां जाय प्रजु जी वं लेती॥अथिर सब वस्तुने काज मूढो करे, जीवडो पापनी कोडी केती ॥।॥ ऊपनी वस्तु सवि का रिमी नवि रहे, ज्ञानशुं ध्यानमां जो विचारी || नाव उत्तम हस्या अधम सब उडत्या, संहरे काल दिन राति चारी ॥ मूं॥३॥ देख कलि कूतरो सर्व जगर्ने नखे, संहरी नूप नर को टि कोटी ॥ अथिर संसारने थिरपणे जे गणे, जाणी तस मूढनी बुद्धि खोटी ॥ {भाराच म म राजनीदिशु परिवख्यो, अंत सव इद्धि विसराल होशे। किसाथै सब वस्तु भूकी जते, दिवस दो तीन परिवार रोशे ।। मूंग॥५॥ कुसुमपर यौवनं जलविंग्जीवितं, चंचलं नेरसुखं देव लोगो॥अवधि मन केवली सुकवि विद्याधरा, कलियुगें तेहनो पण वियो गो ॥ ॥६॥ धन्य अनिका सुतो नावना चावतां, केवल सुरनदीमां हे लीधो॥ नावना सुरलता जेणे मन रोपवी, तेणे शिवनारि परिवार रूं ध्यो ॥ मूं॥७॥इति प्रथम अनित्यत्नावना ॥१॥ ॥अथ द्वितीया अशरण नावना ॥ ढाल चोथी ॥राग कालहरो॥ सांजबजो मुनिसंयमरागी॥ए देशी ॥ ॥को नवि शरणं कोनवि शरणं, मरतां कुणने प्राणी ब्रह्मदत्त मरतो नवि राख्यो, सज हय गय बहु राणी रे, जस नवनिधिधन खाणी रे॥ कोण ॥॥मातपितादिकटग मग जोता, यमले जनने ताणी मरणथकी सुर पति नवि बूटे, नवि बूटे इंसाणी रे ॥ को॥॥ हय गय रथ नर कोडि विद्याधर, रहे नित रायां राय रे।। बहु उपाय ते जीवनकानें, करता अश - - - २४
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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