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________________ ( २) “सद्यायमाला. दीधी रे ।। बा॥२॥ बाप नाश्ने ससरो प्रीतम, गमे सगपण तेह रे॥ रतन रेंटीयो जीवं तिहीं लगें, कदीय न आवे बेह रे । बा ॥१॥धरी त्राकने माल चमरखां, तेल लोट वली पूणी रे ॥अल्प मागे ने घणुं दीये रेंटीयो, नारीयें करी घणी पूंजी रे॥ बाशा सायरने वनस्पति मंगर, ध्रुव तारा सूरज चंदो रे॥कोडी युग लगे रहो रेंटीयो, स्त्री घर सदाआ णंदो रे । बा ॥२३॥ शोल पांत्रीशो मेडता नगरें, शुदि तेरश माहा मा स रे ॥ रत्नबाश्य रेटीयो गायो, सफल फली मन आश रे।। बा ॥४॥ ॥अथ घीनी सद्याय॥ ॥दोहा॥ नवियण नाव घणो धरी, आणी गुणनी श्रेणि ॥ सूपड सर खा थाय जो, चालणी परें मह जेणि ॥१॥ साप तणा गुण माणजो, गाः य तणा गुण आण ॥ जू चार नीरस चरी, आपे घृत अहिनाण ॥२॥ ततणो गुण वर्ण, सांजलजो नर नारी ॥ वस्तु सघली जो सही, घृत समो नहिं संसार ॥ ३॥ . . . . . . ॥ ढाल चोपाश्नी देशीमां। घृतें रूप वाधे बल कांति, घृतें क्रोध थाये उपशांति ॥ लूखु धान्य ते दोहि पचे, घृत सहित सडकोने पचे ॥४॥ कूकस बाकस जेहमां घृत, तेह धान्य लागे अमृत ॥ वाणिया ब्राह्मण सर्व सुजाण, घृत पाखें ते धूजे प्राण ॥ ५॥ हाथ पग उतस्या संधाय, दी ल तणा ते खोडा जाय ॥ घृतनी परें विगल कहेवराय, ए ऊपम घृतने देवराय ॥६॥ बालकने घृत वाहादुं सही, रोश्ने रोटी घी लेही ॥ वली लहे एकवार ते रंगे, घृत जिमे देही तगतगे ||॥ घृतथकी नारां बूराय, सूवावडी ते धीअज खाय । बलद पीये ते मातो थाय, घी खाधे नबला जाय ॥ ७॥ उन्ना रहीने घी पीजीयें, तेंज सबल आंखे कीजीयें ।। गा यर्नु घी हरे सवि वाय, व्याधि सर्वे घीथी जाय ॥ ए॥ शाक पाक थाय नला घीथी; बीजुं एह उसड नथी। घीनो दीवो मंगलिक कह्यो, घीयें जमाश्रीसातो रह्यो ॥ २०॥ न्हाना महोटा कुलर करे, श्रीपुं होय तोल बको नरे॥ सूंदाबुं गलगल ऊतरे, सीहारी होय तो माखण हरे ॥ ११॥ सासु जमा करवा मेल, कोष उपाडी कीधो जेल ॥ खलहल नामे जलि कहेवाय, घी पीरसे तो प्रीतज थाय ॥ १५ ॥ वरे पूढे घी केतुं वह्यु, घीय पखें ते लेखु कयुं ॥ घी संचोरे विवाह अडे, बीजी वस्तु बेशु. पढ़ें । %3 - D
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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