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________________ (१०) सद्यायमाला. - -- - तुने आपशे, वली कदेशे मर्म ॥ उर्गति पडतो राखशे, शीखवशे धर्म ।। ४॥ त्रिहुँ जगमाहे कोई नही, एहवा उपगारी॥ गरथ विना जे शीखवे संयममति सारी ॥५॥ चिहुं गतिमाहे को नही, नमियो बहुवार। वि विधपरे पुःख जोगव्यां, नवि पाम्यो पार ॥६॥ पंचेंघिय ते आपणां, प हेलां वश कीजें ॥ चार कषाय निवारियें, परदोष न दीजे॥७॥ बकाय जलीपरे राखीयें, निज आतम तोले ॥ कुटुंब सहु ए आपणो, म जिनव र बोले राजा सात मन्या नवि चालीयें, तेतो कुव्यसन जाणी॥सहगुरुनी ए शीखडी, ग्रही ज्ञानज आणी ॥ए। आउ मद इंजियतणा, फींपो जि नसाखें ॥मनवंडित फल पामी, परप्राणी राखे ॥१॥ नवविध वाड वि. शुक्रगुं, जे ब्रह्मव्रत पाले ॥ते धीरा संसारमा, जव फेरा टाले ॥११॥ दश विध धर्म यति तणो, सेवो मन सूधो॥धाराधोअरिहंतने, ध्या निर्मल बुको ॥रशा एकादश प्रतिमा वहो, श्रावकनी सार ।। संतोषे सुख उपजे, मानो निरधार ॥१३॥ छादशांगी सिद्धांतमां, श्म जिनवर बोले।सुमति गुप्ति सेवे जिके, नही को तस तोले ॥ १४॥ ते रस लीणा जे रमे, धन ते नर नारी ॥वार वार वांदूं वली, तस हुं बलिहारी ॥१५॥ चौदराजमांहे. जीवडो, नमियो बहुवार ।कुगुरु कुदेवे जोलव्यो, नवि पास्यो पार ॥१६॥ पूने मलीया सजुरु, सही सेवो चरण ॥ नवनो पार जतारशे, सही तारण तरण ॥ १७॥ सहगुरु बिरुद वहे बहु, पर तारण काजा ॥ पुर्गति पडतो राखीयो, परदेशी राजा ॥१॥ एह आदि बहु उकया, केता हूं दाखं॥ पंमित होय ते प्रीबजो, थोडामा बहु नांखुं ॥१ए । पन्नरतिथिमां प्राणि या, नित्य सुकृत कीजे॥दान शियल तप नावना, करि लाहो लीजें ॥२॥ ध्यान धरीजें धर्मन, पहोंचे मन श्राश ॥ हरष धरी सुणजो सह, कहे से वक गंगदास ॥१॥शति पन्नरतिथि सद्याय ।। . ॥अथ रेंटीयानी सद्याय प्रारंज ॥ ॥बारे अमने रेंटीयो वालो, रेंटीयो घरनुं मंमाण जो ॥ परणी त्रिया बोडीने चाल्यो, गयो परदेशे कंथ कमाण जो॥ बा॥१॥बारे वर्षे पर एयो आव्यो, दोढ त्रांबीयो लाग्यो रे ॥ गंगामांहे न्हावा पेगे, दोढ त्रां बीयो पाड्यो रे ॥बाणा॥ माय तायने ससरे सासुयें, अमने कीधां अल गां रे ॥ फुःख निवारण रेंटीयो धास्यो, तेहने जश्ने वलगां रे ॥ बा ॥३॥
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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