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________________ - - प्रतिक्रमणहेतुनित सद्याय. (१६ए) यव चिश्वंदण सुह जाण रे ॥ च॥ए। साधु वली श्राजकृत औषधो, मागे आदेश जगवन्न रे ।। बहुवेल संदीसाबु, बहुवेल करूं लघुतर अनु मति मन रे ।। च ॥ १०॥ चउखमासमण वंदे मुनि अवाश्जेसु ते कहे सहारे । करे रे पडिलेहण लावधी, सुजसमुनि विदित सुगुणरे ॥११॥ ॥ ढाल आग्मी ॥ सरसती मुफ रे मातादियो बहुमान रे॥ए देशी॥ ॥ हवे परिकय रे चउदसि दिन सुधि पडिकने, पडिकमतां रे नत्य न पर्व अतिक्रमे ॥ गृह शोध्यु रे प्रतिदिन तो पण शोधीयें, पखसंधि रे श्म ए मन अनुरोधिये ॥१॥ त्रुटक॥ अनुरोधिय गुरुक्रम विशेषे, उत्तर करण ए जाणीयें ।। जिम धूप लेपन वर विजूषण, तैल न्हाणे माणीयें ॥ मुहप ती वंदण संबुद्ध खामण, तीन पांच पांच शेष ए॥परिक आलोयण अति चारा, लोचना सुविशेष ए॥२॥ ढाल ॥ सबस्सविरे परिकयस्स इत्यादि क नणी, पायचित्त रे उपवासादिक पडीसुणी ॥ वंदणं देरे प्रत्येक खा मणां खामी, देवसियं आलोय रे इत्यादिक विश्रामियें ॥शत्रुटक ॥ विश्रामियें सामायिक सूत्रं, खमासमण देश करी । कहे एक पाखी सूत्र वीजा, सुणे काजस्लग्ग धरी । पाखी पडिक्कमणा सूत्र कहिने, सामाथि कत्रिक उच्चरी । उजो वार करे काउस्सग्ग, हर्ष निज हिअडे धरी॥ माढाल|| मुहपत्ती रे पडिलेही बंदण दीये, समास खामणां रे खमासम ण देश खामिये । खमासण चारे रे पाखी खामणां खामजो, श्वानो अणु सहिरे कही देवसी परिणामजो॥५॥त्रुटका। परिणामजोसवि नवन दे वि, क्षेत्र देवीमां जली॥तो पण विशेषे शहां संजारो, अजितशांति स्तव वली ॥हां ज्ञानाचारनी शुद्धिवंदन संवुड खामणे जाणीय दर्शनाचा रनी लोगस्स प्रगटे, काउस्सग्ग प्रमाणीयें ॥६॥ ढाल ॥ परिमाणे रे अति चार प्रत्येक खामणे, पाखीसूत्र पुगईरे चारित्रशुद्धि पाखी खामकाज स्सग्गे रे, तप आचारना नांखजो॥ सघले आराध्ये रे वीर्याचारनी दाख जो त्रुटक ।। दाखजो चल मास वरसी, पडिकमणनो नेद ए ॥ चल मास वीस मुवीस मंगल,उसग्ग वरसि निवेदए।पाखी चोमासी पंचवरसें सगडुशेवे खामीया सद्याय ने गुरुशांति विधिशु,सुजस लीला पामीयाजा ॥ ढाल नवमी ।। लूखो ललना विषयनो ॥ ए देशी ॥ : ॥निज थानकथी पर थानकें, मुनि जाय प्रमादे जेह मेरे लाल || फ। - - - - - - - श्श
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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