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________________ - - - - प्रतिक्रमणहेतुगनित सद्याय, (१६) ॥ काउसग्ग तेहनी शुझि अर्थे कह्यो, पहिलो चारित्र शुद्धिकार ॥१॥ चतुरनर ॥ परीक्षक हो तो हेतुने परखजो, हरखजो हिअडलामांहि ॥ ॥च॥ निरखो रचना सद्गुरु केरडी, वरषो सरस उगाही ॥च०॥प री॥२॥ए आंकणी ॥ चारित्र कषाय विरदथी शुद्ध होये, जास कषा य उदग्र ॥च ॥ उतुं पुप्फ परि निःफल वेदनु, मानु चरण समग्र ॥च० ॥ परी॥३॥ तेणे कषाय तणा उपशम नणी, आयरिय उवजाय । स्यादि ॥च० ॥ गाथात्रय जणी काउस्सग्ग करो, लोगस्स दोश् अप्रमादि ।। च ॥ परी018 करेमि ते इत्यादि त्रय कही, चारित्रनो ए उस्सग्ग ॥च॥ सामायिक त्रय पाठ ते जाणी, श्रादि मध्यांत सुहसग्ग ॥ चण ॥ परी॥५॥ पारी उजोथ ने सबलोए कही, दर्शनाचार शुछिसद्गु॥ ॥०॥ एक चउवीसबानो काउस्सग्ग करे, पारी कहे पुरकरवरदीवढ॥ च॥ परी॥६॥ सुयस्स जगवर्ड कही ग चउवीसडयं, काउस्सग्ग करिया रे दंत ॥च॥ सकलाचार फलसिद्ध तणी थुश्, सिकरणं बुझाणं कहे महंत ॥ च ॥ परी ॥७॥ तिवाधिप वीरवंदन रैवत मंगन, श्री ने मि नति तिवसार ।। चणा अष्टापद नति करी सुयदेवया, काउस्सग्ग न वकार ॥ च० ॥ परी ॥७॥ क्षेत्र देवता कालस्सग्ग श्म करो, अवग्रह याचन हेत॥०॥ पंच मंगल कही पुंजी संमासग, मुहपत्ति वंदन हेत ॥०॥ परी ॥ए। श्यामो अणुसहि कही जणे, स्तुति त्रय अर्थ गंजीर ॥०॥ आज्ञा करणने देवन वंदन, गुरुणादेश शरीर चणा परी ॥१॥ ॥ दिवसिये गुरु श्क थुति जव कहे, पस्कियाक कहे तीन ॥ च ॥सा धु श्रावक सहु साथै थुश् कहे, सुजस उच्चखर लीन ॥ च० ॥ परी॥१९॥ ॥ ढाल ठही॥ नमस्कार स्वकृत जगन्नाथ जेता ।। श्लोकनी देशीमां ॥ ॥श्राझी सुसाध्वी ते कहे उगाहा, संसार दावानल तीन गाहा ॥ न संस्कृतें ले अधिकार तास, केही कहे ए कही पूर्व नास ॥१॥ अडे ती थे ए वीरतुं तेणे हाँ, प्रतिक्रमण निर्विघ्न थुश् तास कर्षे ॥ कही शकस्त व एक जिन स्तवन नाखे, कृतांजलि सुण अपर वरकनक साथे ॥२॥ नमोईत् थकी देव गुरु जजन एह, धुरै अंते वली सफलता कर अह ॥ यथा नमुबुणं धुरि अंत नमो जिणाणं, जिणवंदण श्क सकलय मुग. पमाणं ॥३॥ उवर्क सुबळं तिलोगस्स चार, काउस्सग्गकर देवसी सु - - damad - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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