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________________ (१६४) . सद्यायमाला..., - - ॥११॥ तपगल मंमन सेहरो रे, दानरतन सूरिराय || मनुकरतन शिष्य शोजता रे, आनंद हरख न माय ॥ ज०॥ १॥ परता पूरण गिरुया ध पी रे, शिवरतन तसु शिष्य ॥ होकानां फल श्म कयां रे, खुशालरतन || सुजगीश ॥ ज० ॥ १३ ॥ इति होका:फल सद्याय ॥ ॥अथ बादशाह प्रतिबोधन वैराग्य सद्याय ॥ ॥राग काफी हुसेनी ॥ या पुनिया फना फुरमाए, आप रहो हुसिया री॥ माल मुलक सब किसकू दिखावे, यमकी जर असवारी ॥ १॥ सां श्यांके बंदे बे, शिर मत ल्यो बुजगारी॥ महेर करोगे बंदगी खुदाके, दील याके क्युं प्यारी ॥ सांग ॥२॥ एषांकणी ॥ दोलत बोड बोड के गये। साहेब, केश के गयेनीखारी ॥ घसते हाथ गये वीन सरखी, हास्या ज्यु । अ जुयारी स रोज निमाज़ फिरावे तसबी, सब सखीयन क्युमा ॥ सब हीमनळू दोई गप है, दरद कीये यु जारी ॥सांपा कीटिका वेखून खुदाके, लिखित न है दरबारी ॥ सब हिसाब जब वे पूजेगा, तब | होवेगी खुवारी ॥सांगा खानेकुं शिरकाट बिराना, महिरमान पुकारे॥, युवि ज्यस्त होवे सबहनकू, बूडी न्यस्त तुंहारी ॥ सां॥६॥ पातसाह श्रीबाबा श्रादम, सुण चेतन हमारी ॥ शीख जली ए सकलचंदकी, ह मकुंपूना तुंहारी ॥ सांग ॥ इति बादशाह प्रतिबोधन सद्याय ।। । ॥अथ श्रीप्रतिक्रमण हेतुलित सद्याय प्रारंजः ॥ . . ॥दोहा॥ श्री जिनवर प्रणमी करी, पामी सुगुरु पसाय ॥ हेतुगर्न पडिक्कमणनो, करशुं सरस सद्याय ॥१॥ सहज सिक जिन वचन बे, हेतुरुचिने हेतु ।। देखाडे मन रीजवा, जे जे प्रवचन केतु ॥२॥ जस गोठे हित जबसे, तिहां कहीजें हेतु ॥रीजे नही बजे नही, तिहां हु । हेतु अहेतु ॥३॥ हेतु युक्ति समजावी, जे बोडी सवि धंध ॥ तेहिज | हित तुमें जाणजो, आ अपवर्ग संबंध ॥३॥ ॥ढाल पहेली ॥षजनो वंश रयणायरू ॥ ए देशी॥ .॥पडिकमणं तेयावश्यकं, रूढि सामान्य पयो रे॥सामायिक चळवी सलो, वंदन पडिकमणडो रे ॥ १॥ श्रुतरस नवियां चाखजो, राखजो गुरुकुल वासो रे ।। जांखजो सत्य असत्यने, नाखजो हित ए अन्यासो रे, | ॥ श्रुतरस॥२॥ ए आंकणी॥ काउस्सग्ग ने पञ्चरकाण , एहमां षट् ।। SSA - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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