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________________ सडसठ बोलनी सद्याय. anmantra - -- जो दृढ सही, तो मोटो रे धर्म प्रासाद मगे नही ॥ पाश्ये खोटे रे मोटो मंमाण न शोनी, तेह कारण रे समकितअ॒ चित्त श्रोन्नीय ॥ ५७ ॥ त्रु: टक ॥ योनी चिच नित एम नावी, चोगी नावना नावियें । समकित निधान समस्त गुण, एहवू मन लावियें ॥ तेह विण बूटा रत्नसरिखा, मूल नत्तर गुण सवे ॥ किम रहे ताके जेह हरवा, चोर जोर नवे नवे । एए॥ ढाल | जावो पंचमी रे नावना शम दम सार से पृथवी परे रे समकित तसु आधार रे । उही नावना रे नाजन समकित जो मले, श्रुत शीलनो रे तो रंस तेहमां नवि ढले ॥६॥ त्रुटक ॥ नवि ढले समकित नावना रस, अमिव सम संवरतोषिट नावना ए कही एहमां, करो आदर प्रति घणो ॥ श्म लावता परमार्थ जलनिधि, होय ननु ऊक मोल ए॥ धन पवन पुण्य प्रमाण प्रगटे ।। चिदानंद कलोल ए ॥११॥ ॥ ढाल ।। जे मुनिवेष सके नवी बंमो॥ ए देशी ॥ठरे जिहां समकित ते धानक, तेहना घट विध कहिये रे ॥ तिहां पहिलं पानक चेतन, लक्षएप आतम सहिये रे ॥ खीर नीर परें पुशल मिश्रित, पण एहधी ने अलगोरे॥अनुन्नव हंस चंच जो लागे, तो नवि दीसे वलगो रे ॥६॥ वीजुं धानक नित्य आतमा, जे अनुनूत संन्नारे रे॥ बालकने स्तन पान वासना, पूरव जव अनुसारें रे।। देव मनुज नरकादिक तेहना, अनित्यपर्याय रे ॥ ऽव्ययको अविचलित अखंमित, निज गुण आतमराय रे ॥६३ ॥ त्रीजु पानक चेतन कर्ता, कर्मतणे ने योगे रे ॥ कुंलकार जिम कुंजतणो जे, दमादिक संयोगे रे ॥ निश्चयथी निज गुणनो कर्ता, अनुप चरित व्यवहारे रे ॥ व्यकर्मनो नगरादिकनो, ते उपचार प्रकारे रे ॥॥ चोथु थानक ते नोक्ता, पुण्य पाप फलकेरो रे ॥ व्यवहारे निश्चय नय दृष्टे, मुंजे निज गुण नेरो रे ।। पंचम धानक डे परम पद, अचल अनंत सुख वासो रे ॥आधि व्याधि तन मनश्री लहिये, तसु अनावे सुख खा सोरे॥६५॥ यानक मोफतणं. संयम ज्ञान नपायो रे ॥ जो साहिजे लहियें तो सघले, कारण नि:फल थायों रे ।। कहे ज्ञान नय ज्ञानज साधु, ते विण फूली किरिया रे ॥ न लहे रूपूं रूपू जाणी, सीप न. पी जे फिरिया रे ॥६६॥ कहे किरियानय किरियाविण जे, झान तेह शुं करशे रे ।। जल पेसी कर पद न हलावे, तारू ते किम तरशे रे ॥ दूषण - - - h Manmo
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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