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________________ श्री परमकृपालजीकृत चनगतीवेलनी सधाय. (१५३) -- - - - - श्राकाश ॥स्वानरूपे करडे तिहां रे, मृग जिम पाडे पास रे॥ जिण॥३॥ पनरे जेदे सुर मिली रे, करवत दीये रे कपाल ॥आरोपि शूली शिरे रे, जांजे जिम तरु मालो रे॥ जि०॥४॥ बोले ताता तेलमां रे, तली करी काढे ताम ॥ वसी जोनरमा क्षेपवे रे, विस्था तास विरामो रे ॥ जिना ५॥ खाल उतारे तेहनी रे, आमीष दीये आहार ॥ बहु अरडाट ते पा डता रे, तन विच घाले खारो रे ॥ जि॥६॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ राग मारु ॥ तापकारी ते नूमीका रे, वनसुशीतल जाण ॥श्रावी वेसे तरुअर बां हडे रे, पडतां जांजे प्राण ॥१॥ चतुर म राचजो रे, विरुआ विषय विला स ॥ च ।। सुख थोडां मुख बहुला जेहथी रे, लहीये नरकनिवास ॥चण ॥२॥ कुंजीमांहे पाक करी तस देहना रे, तिलजिम घाणि माहि।पीलि पीलिने रस काढे तेहना रे, महिर न आवे कांहिं ॥ च॥३॥ नाग जाए त्रीजी नरकलो रे, मन धरतां तपत्रांत ॥ पनी परमाधरमी सुर मि ले रे, जेहवा कालकृतांत ॥ च॥४॥ खाल उतारे तेहनी खंतशुं रे, खार जरें तस देह ।। पूरानी पेरें ते तिहां टलवले रे, मेहेर न आवे केह ॥च ॥५॥ दांतां विच दे दस आंगुली जी, फिरि फिरि लागे पाय ॥ वेदन सहतां काल थयो घणुं जी, हवे ए सहिय न जाय ॥ च ॥६॥ जिहां जाये तिहां ऊठे मारवा रे, कोई न पूठे सार । उखजरी रोवे दान से न कस्यो रे, निपट थ निराधार ॥ चण्॥७॥ ॥ढाल चोथी गरे जीव धरम न कीधलो॥ ए देशी॥ ॥ परमाधामी सुर कहे, सांजल तुं नाई। केहा दोष अमारडा, निज देख कमाई॥प०॥१॥ पापकरम कीधा घणां, बहु जीव विणास्या ॥ पीड न जाणी परतणी, कूडां मुख नाख्या ॥ पं०॥२॥चोरी लीधां धन पारकां, सेवी परनार ॥ आरंज काम कीयां घणां, परिग्रह नहीं पार ॥ पत्र ॥निसि नोजन कीयां घणां, बहु जीवसंहार ॥ अनदय अथाणां था चस्यां,पातिक नदी पार ॥ प०॥४॥मातपिता गुरु उलव्या, कीधा को || ध अपार ॥ मान माया खोज मन धयां, मतिहीण गमार ॥ प०॥५॥|| ॥ढाल पांचमी॥ - ॥ एम कहीं सुरवेदनाए, चलावे उदीरे तेहितो॥ सिलाकंटाला वज - - - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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